आत्म शुद्धि मार्ग | Aatma Shuddhi Marg

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ १ जिहिं विचारते पाई है, मन को थिर सुख ठोर । ताको अनुभव जानिये, नदि अनुभत्र कछु भोर ॥१०८॥ बिना बिचारे ज्ञान के, तू जंगल का सेसे । रिध्या यों ही पचत्त दे, क्यों न करे झब सोज ॥१०९॥ मन सतंग बस सूरत को, ज्ञानांदश चित धार । मा थम्ब से बांध ले, सजा शुखल डार ॥११४॥ जम तो मन रवि डाट ले, ज्ञान मकर के स्यान । पन्दू सम उपयोग से, कम तल को हान 0१११1 सासा सम संसार हे, गुरू कृपा झादित्य । शान नेत्र बिन किम लखे, धाए नयो एु पवित्र ॥११९॥ 'विपय वासना फरत जो, आांवे ज्ञान जगीस । जेसठ का उन समय में, छिनमें होय छु्तास ॥१ै१३॥ जो तू चाहे ज्ञान सुख, तो विषधन मन फेर । हैक : और ठोर भटके मती, अपने ही में देर ॥९१४॥ ज्ञान रूप दीपक करने, बचे न कम पतम । नो रहो दोनन में, झूठी एक अलग ॥११४॥ ज्ञान संचरे जिद्दि समें, रहे न कम समाज । झोर न पंछी .उट सके, नहां बसेसा बाज ॥११६॥ थर नहिं छुट्यो एक सा, छुटवा' कम . छुटंग । ज्ञान तणा सत्संग थी, देखो ठाणायंग ॥११७॥




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