आत्म शुद्धि मार्ग | Aatma Shuddhi Marg
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)३ १
जिहिं विचारते पाई है, मन को थिर सुख ठोर ।
ताको अनुभव जानिये, नदि अनुभत्र कछु भोर ॥१०८॥
बिना बिचारे ज्ञान के, तू जंगल का सेसे ।
रिध्या यों ही पचत्त दे, क्यों न करे झब सोज ॥१०९॥
मन सतंग बस सूरत को, ज्ञानांदश चित धार ।
मा थम्ब से बांध ले, सजा शुखल डार ॥११४॥
जम तो मन रवि डाट ले, ज्ञान मकर के स्यान ।
पन्दू सम उपयोग से, कम तल को हान 0१११1
सासा सम संसार हे, गुरू कृपा झादित्य ।
शान नेत्र बिन किम लखे, धाए नयो एु पवित्र ॥११९॥
'विपय वासना फरत जो, आांवे ज्ञान जगीस ।
जेसठ का उन समय में, छिनमें होय छु्तास ॥१ै१३॥
जो तू चाहे ज्ञान सुख, तो विषधन मन फेर ।
हैक
: और ठोर भटके मती, अपने ही में देर ॥९१४॥
ज्ञान रूप दीपक करने, बचे न कम पतम ।
नो रहो दोनन में, झूठी एक अलग ॥११४॥
ज्ञान संचरे जिद्दि समें, रहे न कम समाज ।
झोर न पंछी .उट सके, नहां बसेसा बाज ॥११६॥
थर नहिं छुट्यो एक सा, छुटवा' कम . छुटंग ।
ज्ञान तणा सत्संग थी, देखो ठाणायंग ॥११७॥
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