तीर्थंकर चरित्र भाग 3 | Tirthkar Charitra Part - 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
488
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पर तीर्थंकर चरित्र-भा. ३
की चिन्ता से वे उद्विन हो गए । हताश हो कर वे इधर-उधर देखने लगे । उनकी दृष्टि
कुछ मनुष्यों पर पड़ी । वे उनके निकट पहुँचे । वे ग्वाछे थे और गायें चराने के लिए बन
में आये थे । वे कुछ चार मनुष्य थे । उन्होंने मुनिजी को प्रणाम किया और भक्तिपुर्वक
उनकी सेवा की । मुनिजी ने संसार की असारता एवं मनुष्यभव सफल बनाने का उपदेश
दिया । वे चारों ही वोध पाये और मुनिजी से निर्मथ-दीक्षा ले कर संयम और तप की
आराधना करते हुए विचरने लगे । चारों मे से दो मुनि तो निष्ठापुवंक धर्म की आराधना
करते रहे, परन्तु दो मुनियों के मन में धर्म के प्रति निष्ठा नहीं रही । वे तपस्या तो करते
रहे, परन्तु मन में धर्म के प्रति अश्रद्धा, अनादर एवं जुगृप्सा ने घर कर लिया । अश्रद्धा
होते हुए भी संयम और तप के प्रभाव से काल कर के वे देवलोक में गये । देवायु पूर्ण होने
पर वे दशपुर नगर में शांडित्य ब्राह्मण की दासी के गर्भ से पुत्र के रूप में जन्मे । युवावस्था
आते ही पिता ने उन्हें अपने खेतों की रखवाली के काम में लगाया । रात को वे खेंत के
निकट रहे हुए बट-वृक्ष की छाया में सो गए । वृक्ष की कोटर में से एक विषधर निकला
और दोनों भाइयों को उस लिया । वे दोनों मर कर कलिजर पर्वत पर रही हुई हिरनी
के उदर से उत्पन्न हुए । वे दोनों प्रीतिपुवंक जीवन यापन करने लगे । किन्तु एक शिकारी
का वाण लगने पर मृत्यु पाये और गंगा नदी के किनारे रही हुई हंसिनी के गर्भ से हंसपने
उत्पन्न हुए । वहाँ भी पारधी की जाल में फंस कर मारे गए |
चित्र-संभ्रति>>नसूची का विश्वासघात
हंस के भव से छूट कर दोनों जीव वाराणसी में भूतदत्त नामके चाण्डाल की पत्नी
की कुश्ति से पुत्रपने उत्पन्न हुए । उनका नाम 'चित्र' और ' संभूति ' रखा गया । दोनों
भाइयों में स्नेह-सम्बन्ध प्रगाढ़ था । वे साथ ही रहते खाते भर क्रीड़ा करते थे ।
वाराणसी के शंख नरेश का नमूची नाम का प्रधान था । नमूची पर नरेश ने
एक गम्भीर अपराध का आरोप लगा कर मृत्य-दण्ड दिया. और बन में लेजा कर
मारने के लिये भूतदत्त चाण्डाल को सौंप दिया । भूतदत्त नमूची को ले कर बन में आया |
फिर नमूची से दोदा- यदि तुम भू-गृह में गुप्त रह कर मेरे चित्र और संभूत को पढ़ाया
गरो, तो में तुम्हें प्राणदान दे कर तुम्हारी रक्षा करूँगा । वोटों स्वीकार है तुम्हें ? ख़ान-
पान मेरे यहाँ ही होगा ।' नमूची मृत्युभय से भयभीत था । वह मान गया और भूतदत्त
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