सुबोधि दर्पण | Subodhi Darpan

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Subodhi Darpan by दीपचंद्र वर्णी - Deepchandra Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है ) दूसरी बात यह दै कि जिन्होंने कदाचित्‌ लद्य तो पद़िचाना है, किन्तु वे उसकी दिशा भूल रहें दें झर इसी लिए विपरीत दिशा में चाहे कितनी भी तीदंख गति से चला जाय, तो भी चलने बालों अपन लक्ष्य से अधिकाधिक दूर ही होता चंज्ञा जायगा, उसे दिशा बदले सिवाय कभी भी अपना लय प्राप्त नहीं होगा । इस लिए लद्दय की दिशा जानना 'अवबश्यक है । तीसरी वात ईै, लद्य को पढ़िचान कर तथा उसकी दिशा जानकर उसी दिशा में यथोक्त मार्ग से चलना, सो यहां भी भूल होती है, अर्थात कितनेक, लदंय श्मौर दिशा को जानते पहचानत हुए भी डससे विपरीत्त दिशा में नेन्र बन्द करके को दें शीघ्र गति से व कोइ मन्द गति से चल्तते रहते हैं, अथवा कई निरुद्यमी होकर भाग्य के भरोसे जहां के तहां पड़े रहते हैं, और इस लिए वे भी लदय तक नहीं पहुंचते अतः लददय को पह़िचान कर तथा उसकी दिशा जानकर अपनी शक्ति के अनु- सार उसी दिशा में सीधे सरल तथा निष्कंटक माग॑ से चलना चाहिए । बस, इन्ही तीन बातों को हम, सम्यग्दशन [ अपने लद्य को पढ़िचान या उस पर दृढ़ श्रद्धा या विश्वास सम्यग्ज्ञान [ लदच्य को दिशा जाननां अथात्‌ू सच्चा ज्ञान ] और सम्यक चारित्र [ लदच्य की दिशा में शक्त्यलुसार ठीक ९ चल्तन। |] अथत्ति्ाण ए)01 ए0]10४8, 7.11: 711 0फ़]100 ए6. घाशपे ए1छ11( ए0ए10ए८6 मी कह सकते हैं । बस, इन तीन के ठीक होने पर लय की प्राप्ति अवश्य ही हाती है, से ही श्रीमदुमारवामी आचाय ने तत्त्वार्थ सुत्र में कहा है :--




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