सामायिक पाठादि संग्रह | Samayek Pathadhi Sangrah

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Samayek Pathadhi Sangrah by दीपचंद्र वर्णी - Deepchandra Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श श 1 इनछंक्रश को भांति दोनों हाथ करे सो 'अंक्शित' । ०-कछुवे की मांति शंगों को सिकोडे सो 'कच्छपारिंगित' । ८-मली की भांति पाश्वमाग से प्रयास करे सो “मत्स्योदर्त' । ६ षन्धके प्रति दुष्ट भाव राखे सो 'मनोदुष्ट' । १०-शेनों कुदनियों से धपनी छाती को दबाव सो विदिका-बद्ध' ! ११-पुरु आचाये से घमकाया जावे सो 'भय” । १२-गुरु आाचाय से डरे सो 'भयसात' । १३-ैं संघ पूज्य घनू” ऐसा जाव रक्खे सो “ऋद्धि मौरव' । १४-छपने को ऊंचा माने सो गौरथ । १५-द्िपकर षंदना करे सो “स्तनित, । १६-गुरु श्याह्ञा छो भंग करे सो (प्रत्यनीक, । १७-कल्ट विसंवाद करके क्षमा नही करे सो श्रदुष्टः । १८-दृ सरे साथियो को घमकारवं सो (तर्जितः । १६-शाल्ञीय पाठं न बोलकर बातें करे सो शबः २०-प१ठ पठते हंसी मजाक करे सो लित ¡ २९-कटि, गरदन और हृदय पर बल (सलवटें) छाले सो “त्रिवलित” । २२-भौंदि चढावे सो 'कु'चित' ०३-इघर उघर देखे सो 'दृष्ट*। २४-देव या गुरु के सन्मुख खड़ा न रहे सो “शरद” । गशनबंदना करने को इल्लत (बेगार) समे सो 'संघकर मोचन' । २६०उपकरण झादि पलञे्े तो वदनां करे सो श्रालब्ध । २७-उपकरण शआादि की चाहना से वंदना करे सो “श्रनालब्घ' । २८-पाठ श्र विधि में कमी करे सो 'हीन” । २६-झालोचना 'ादि पाठों में विलंब करे सो उत्तरयूलिक' | दे०्पाठ को स्पष्ट न बोलकर मन में गुणे सो 'मूक' । ३१-पाठ को ऐसा जोर से बोले कि दूसरों के पाठ श्ादि में विजन (मद ) पढ़जावे सो 'ददु र । २९-भेरबी कल्याण मादि रगो से स्वर साघकर पाठ पढ़े सो 'सुललित” दोष है । कुतिकम में इन बत्तीस में से एक भी दोष शगावे तो लिलेशका फल नंदीं मिलता है देसी जिनाका है !




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