राजस्थान का पिंगल साहित्य | Rajsthan Ka Piagal Sahity

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Rajsthan Ka Piagal Sahity  by मोतीलाल मेनारिया - Motilal Menaria

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पृष्ठभूमि पु प्रयाण के समय ठोस और ढाद़ी छोग इसे सेना के आगे गाते हुए चरते थे । डिंगल भाषा के कचियों ने इसका वर्णन किया है ।* युद्ध का अवसर न दोने से यह राग अब शनेः-दाने: विस्खत होता चला जा रहा दे। संगीत-शाख् संबंधी प्राचीन संस्कृत प्रंथों में हस राग का नासोल्लेख नहीं मिलता । परन्तु अठारवीं शताब्दी और उसके बाद के कुछ मंथों में इसका नाम देखने में भाता है । उदयपुर के सरस्वती-भंडार में 'रागमाला' की एक सित्रित प्रति सुरक्षित है । यह कदाखित महाराणा जयरसिंह के राजत्व-काल (सं० १७४७-५५) में तैयार की गई थी । इसमें राग सिंधू को राग दीपक का पुत्र बतलाया गया हैं । इसमें राग सिंधू का एक भव्य चित्र भी हे । संगीतकला के साथ-साथ संगीत-याहित्य को भी राजस्थान से बहुत प्रोत्साइन मिछ्ा है । संगीत-शास्त्र संबंधी कई उत्कृष्ट अ्रंथ यहाँ लिखे गये हैं जिनमें संगीत-कला के विविध अंगों का बढ़ा सूक्ष्म भोर चेज्ञानिक विवेचन मिलता है । इनसे मेघाड के महाराणा कुभाजी (सखं० १४५९०-१५२१५) के रचे तीन ग्रंथ बहुत प्रसिद्ध हैं--संगीत-मीमांसा, संगीतराल और सूकप्रबंध ।*' इसमें संसीसराज सद्द से बढ़ा है । कहा जाता है कि इसमें १६००० दकोक थे 1 परंतु जाजकल यह ग्रंथ पुरा नहीं मिलता । जयपुर के कछवाहा राजा भगवंतद्दास (सं० १६३०-४१) के पुत्र साघवसिंड बड़े संगीत-प्रेंमी थे । उन्होंने स्थानदेश के पुंडरीक विहल से 'राग-मंजरी' नाम का एक ग्रंथ लिखवाया था” जो प्रकाकित भी हो सुका हैं। भगवंतदास से कोई दो सो घर्ष १९. (क) हुवो अति सींघवों राग, वागी हकों | थार आया पिसण, घाट लागै थर्कां || -ईसरदास (स० १५९५-१६७५) (ख) सखी अमं)णी साहिबी, निरमें काली नाग । सिर रास बिग समघ्रम, रीकी सिधू राग ॥ -ाबीकादास (संग १८२८-९०) (ग). आठस जागे ऐस में, बपु ढीले विकसत | सींघू सुणियाँ लो गुणी, कबच न मावे कत || -यूरजमल (सं० १८७९-१९२५) १३, हरबिलास सारडा। महाराणा कुंभा, प्र० १६६ । श४. एम० कृष्णमाचार्य; हिस्ट्री आव क्‍्लासिकल संस्कृत लिटरेंचर, प्र० ८६२ । १५. ओझा; राजपृताने का इतिहास, पहली जिल्द, पू० ३२!




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