जैन न्यय | Jain Nyay

Jain Nyay by सिद्धान्ताचार्य पण्डित कैलाशचन्द्र शास्त्री - Siddhantacharya pandit kailashchandra shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय सूची २०७, तकके द्वारा ब्याप्तिके ग्रहणका समर्थन २०८, प्रत्यक्षसे व्याप्तिका ज्ञान माननेवाले बोद्धोंका पूर्वपक्ष २०९, जैनोंके द्वारा तकंकी आवश्यकताका समर्थन २०९, अनुमानप्रमाण २१९२, अनुमानका लक्षण २१२, हेतुके लक्षणके विषयमें बौद्धोंका पूर्वपपल २१२. (हेतुके तोन लक्षण पक्षधर्मत्व, सपक्षत्व और विपक्ष असत्त्वका समर्थन), जैनोंका उत्तरपक्न २१३, (त्रेरूपय हेत्वाभासमें भी रहता हैं २१३, अन्यथानुयपत्ति ही हेवुका सम्यक्‌ लक्षण है २१५) हेवुके योगकल्पित पांचर्ूप्य लक्षणकी आलोचना २१५ ( त्रेरूपयकी तरह पांचरूप्य लक्षण भी सदोष है, अन्ययानुपपत्ति या अविनाभाव नियम ही हेतुका सम्यक्‌ लक्षण है २१६) । अविनाभावके दो भेद २१६, हेतुके भेद २१७, हेतुके भेदोंके विषयमें बौद्धका पूर्वपक्ष २१८ ( बोद्धके अनुसार हेतुके दो ही भेद हैं--कार्यहेतु और स्वभाव- हेतु २१८ ), उत्तरपक्ष २१९ ( अन्य हेतुओंके सद्धावकी सिद्धि २२२ )) हेतुके पाँच भेद माननेवाले नैयाधिकका पूर्वपक्ष २२२, उत्तरपक्ष २२३ ( पाँचसे अति- रिक्त भी हेतुओंको सिद्धि ), सांख्यसम्मत हेतुओंके भेरोंका निराकरण २२३, साध्यका स्वरूप २२४, मर्थापत्ति प्रमाणके सम्बन्धमें मीमांसकोंका पूर्वपक्ष २२४, जैनोंके द्वारा अर्थायत्तिका अनुमानमें अन्तर्भाव २२६, अनुमानके अवयव २२९, अनुमानके अवयवों के विषयमें बौद्धका पूर्वपक्ष २२९, ( केवल हेतुका ही प्रयोग आवश्यक है, प्रतिज्ञाका नहों २३० ), उत्तरपक्ष २३+ ( पक्षका प्रयोग भो आवद्यक है २३१ ), अनुमानके भेद र३े२ । आगस या श्रुतप्रमाण २३२, वैदेपिकोंका पूर्वक्ष २३३ ( शब्द प्रमाण गनुमानसे भिन्न नहीं है २३३ ), उत्तरपक्ष २३४ ( मनुमानसे भिश्न दाब्द प्रमाणको सिद्धि ), बोद्धोंका पूर्वपक्ष २३६ ( शब्दप्रमाण ही नहीं है मत: उसका अनुमानमें अन्तर्भावका प्रदन हो नहीं है २३६ ), उत्तरपक्ष २३७ ( शब्दप्रमाणकों सिद्धि २३७ ), मोमांतकका पूर्वपक्ष २४० ( शब्द और अर्थका नित्य सम्बन्ध हे २४२), उत्तरपक्ष र४र ( शब्द भोर अर्थका नित्य सम्बन्ध नहीं है २४३ )), दब्दके अर्थके विषयमें बौद्धोंका पूर्वपक्ष २४३ ( अन्यापोह ही दब्दार्थ है २४४ , बन्यापोहका अर्थ २४५ ), उत्तरपक्ष २४६ ( अन्यापोहका निराकरण र६ ), शब्दार्थके विषयमें मीमांसकका पूर्वपक्ष २४९ ( शब्दका विषय सामान्य मात्र है ), उत्तरपक्ष ९५० ( शाब्दका विषय सामान्य मात्र नहीं है किन्तु सामान्य विशेषात्मक है २५३), शब्दको नित्य माननेवाले मीमांसकों का पूर्वपक्ष २५४, उत्तरपक्ष---दाब्द अनित्य है २५५, बेदको अपोरुषय माननेवाले मीमांसकोंका पूर्वपक्ष २६०, उत्तरपक्ष--बेदके अपौरुषेयत्वकी समीक्षा २६ २, स्फोटवादी वैयाकरणोंका




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