तेरापंथी - हितशिक्षा | Tera Panthee Hitashiksha

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Tera Panthee Hitashiksha  by मुनि विद्याविजय - Muni Vidyavijay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ट की श् हा इत्यादि जेनधमेंके सिद्धान्तांस बिछकुछ विपरीत सिद्धान्तो- को मानने वाले यदि ' जैसी ' होनेका दावा करते हो, तो उनका यह वैसा दी दावा है, जैसे कि--एक कसाई, ब्राह्मण द्ोनेका दावा टी हैं, इसमें एक और भी प्रमाण है | कि देव, चौबीस तीथकर हैं, तेरापंथियेंकि देव, उस पंथके क भीख्म है । जेनाके गुरु, पंचमहात्रतको पालने बाले, कंचन-कामनीके सवबंधा त्यागी, उष्णजढकों पीनेवाठे, निर्दोध आहारको छेनेवाठ आर महांवीरस्वाभीके तीथमें गुरुपरंपरास चले आनेवाल साघु- मुनिराज दूं । तरापंथियोंक गुरु, साध्वियों- श्राविकासोकों रातके दस न बजे तक पासम दी बेठा रखनेवाले, एक एक दियरोक अररसे सियत किये हुए घरोमेंखे समरजी मृजब माल उठाया, साध्वियाक पाल आदारपानी भंगवानिवाले, कच्चे पानीकों पनिवाले, ( एक घड़े पानी जरासी राख डाल दी, इससे पका नहीं कद्दा जा सकना, आर ऐसे राखके पानीके पीनेका अधिकार भी गद्दी है, इसलिये दम उलकों कच्चापानी ही कहते हैं ) मूँद पर दिनसर सुद्प्ती दांव रखने वा, तेरापंथी साघु ही हैं। जनाका धरम, महारवीरस्वामीका प्ररूपित है, ओर तेरापंथियोंका घ्मे, भीखमका उप्पादित हु | 217 पद पी ८] पा 2 दा अब बतावें पाठक; तेरापंथियोंको जेनी कहना, कितनी भारी भूल है । ऊपर कहे हुए संसार-ब्यवद्दारकों छेदनकरने वाढे, हृदयको निदेय घनानेबाठ बहुतसे सिद्धान्तोंका नामोलेख * तेरापंथ-मत- सभीक्षा ' में किया गया हैं | भव इस पुस्तक्में उनके




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