ढोलामारूरा दूहा | Dholamarura Dooha
श्रेणी : अन्य / Others
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
700
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
नरोत्तमदास - Narottam Das
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राम सिंह - Ram Singh
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सुर्यकरण - Surykaran
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[७
बातों के सहित्य में राजकुमार ढोला श्र रूपराशि राजकुमारी मारुवणी
की सुदर कहानी का स्थान बहुत ऊँचा है। उसका प्रचार यहाँ तक है कि
बाजार मे पोथी वेचनेवालों के पास भी ढोला मारू की बात अथवा ढोला-
मारू का ख्याल नाम की छोटी-छोटी पुस्तकें हम देखते है। वह मोहिनी
कथा कितने ही लालों को पलने मे हुलराने श्रोर उनके कमलनयनों में
सर्वेद्रिय-दुःखहारिणी सुखनिंदिया को बुलाने में जादू का सा कार्य करती
रही है। मैं श्रपनी दी कहूँ कि न जाने कितनी रातों मे झपनी पूज्य माठश्री
तथा अपने प्रिय कहानी कहनेवाले ब्राह्मण गगाबख्श से राज रानी की इस
सुमघुर कहानी को चाव के साथ सुनकर मैने इसका पीयूष पान किया है
तर इसके कई श्रश तो श्रभी तक मेरे स्पतिपट्ल पर खचित हैं। चार्र्णो
श्र भारों ने इस कहानी को नाना रूप देने में श्रपनी बुद्धि श्रौीर चठुराई का
खूब उपयोग किया है श्र इसके कथानकों एवं ब्रत्तातों को चित्राकित
करने में झ्रगणित चित्रकारों ने अपने कौशल का प्रदशन किया है। इसको
यदि राजस्थान के सर्वोत्तम जातीय कार्व्यों में से एक कहा जाय तो कोई
असंगति नहीं ।
इतिहास की कसोटी पर कसे जाने से इसकी काति में कुछ भी न्यूनता
नहीं आने की । वास्तविक दत्त एवं तिथि श्रादि के भेद से इसके श्मरत्व
और गोरव को कोई बाधा नहीं पहुंच सकती । झवश्य ही छँढाइड राज्य
के मूल सस्थापक के साथ इस कहानी का उतना संबघ नहीं । सोढदेवजी के
पुत्र दूलहरायजी अपने पिता की गद्दी पर मि० माघ सुदी ६ सबत् १०६३
को विराजे थे श्रौर उनका स्वगंवास खोह स्थान में मि० मार्गशीष सुदी ३
सं० १०६२३ को हुश््रा था जब वे ग्वालियर पर श्राक्रमण करनेवाले दक्षिण के
राजाश्रों को पराजित कर लौट रहे थे। मददामति टाड साइब ने मार्दों से
जिस रूप में इस कहानी को सुना उसी रूप में लिख दिया । इतने पर भी
यह कहानी अपनी उत्तमता के कारण राजस्थानी साहित्य-भडार में एक
निराला महत्व रखती है श्रौर कृतविद्य अथच कार्यकुशल श्र परिश्रमी
१ संपादकों की सम्मति में ठोला श्रोर दूलहराय एक ही व्यक्ति नहीं जैसा
कि टाड ने लिखा है । परंतु, जैसी कि श्री श्रोमाजी की सम्मति है, दूलहराय
का समय ग्यारहवीं शताब्दी न होकर तेरहवीं शताब्टी है तथा ढोला दूलददराय
का पू्व॑ज था श्ौर दसर्वी शताब्दी के लगभग हुष्प्रा है ।--संपादक ।
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