गुरुकुल - पत्रिका | Gurukul - Patrika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
34
श्रेणी :
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No Information available about रामप्रसाद वेदालंकार - Ramprasad Vedalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गुख्कुल-पत्रिका १६८२
दूसरे दाशंनिक प्रकृति तथा जौव इन दो
तत्वों को बानते हैं प्राचीन जनाचार्यों की ऐसी
ही मान्यता थी उनके श्रतुसार साधना की चरम
परिणति ईश्वर्त्व ही है । श्रत कठोर साधना
करेंके जीव ही ईश्वर बन नाता है जगत व कर्ता
ईेवर कोई नही हैं बीज से थीज रस न होता है
तेँवा येहीँ क्रम तदेब चलती रनता है । प्रत्यक्ष का
म्रपलाप॑ करैंने मैं यह मत भी मान्यैकोटि में नहीं
श्रातता कैयोरकि ससार में कही भीं कर्ता के बिना
सैमार्ग रूप से बनी कट दिलाई नहीं टेनी ।
केदार तथा बु्धिपूवक बनों वस्तु करती ०1 स्वय
बॉ करी देती हैं चाहे हमने “स कर्ता को न
देखा हो । घड़ी, पैन सर्ईिकिल द पुस्तक श्रादि
बस्तुभ्ी के बनाने बोले को न देखने पर भी हम
उसे स्वय निर्मित नहीं कह सकते ।
तोसरे वाज्ञनिकों 3 ध्रवुद्धार ब्रह्म हो एक
मप्र भस्तु है न ज्लीव को मा माधिका सत्ता है
श्रौर न प्रकृति की सब ब्रह्म का ही प्रपत है,
जंतरे,ककुडी प्रपने में से जुप्ता निकलती तथ
ध्रुपुने मे समेड़ नेत्री है इसी प्रकार ब्रह्म भ्रपने में
से बसार डक निकालता तथा प्रलय ऐ स्वय में
ली, कर, ्ेठा जै। विद्वाद् इस दबावू को भा
श
न
प्र
स्वीकार नहीं करते उनका कहना हैं कि मंसेंदी
जीवित भ्रवस्था में ही जाने घ्गो निर्किक था
समेर सकती है मृतावस्था में नहीं श्रत को
निकालते समय मकड़ी का श्ात्मा तथा शरीर ये
दो तत्व वतम न थे । इस भ्रवस्था में मकड़ी के
अ्रत्मा ने मकड़ी के शरीर से जाला निकाला है
अत श्रात्मा एवं शरीर इन दो तत्वों ने मिलकर
जाले की रचना की है । इसी प्रकार परमेदवर भी
सैपार को श्रमित्त निमित्तोपादान कारेशा नहीं
दो सकता । भ्रपितु मपष्डी के हृष्टान्त के सम ने
उसे निमित कारग ही मानना पढ़ंगा वैदिक
धर्मी पुर्वोक्त तीनो तत्वों को सत्ता स्वीकार करता
है । उनके भ्रनुसार ब्रह्म सत्य जगनु मिथ्या जीवों
ब्रह्मव नापर को जो प्र ब्रह्म सत्य है जगत
स्व नवत्त मिथ्या है तथ जोब ब्रह्म ही है भिन्न
नहीं यह इस इलोकाभ का ध्रथ भी युक्त नहीं.
है म्रपितु इसका वास्तविष श्रथ यह हैनबरह्मा
सत्यम-परम तमा सत्य सदा एक रस ध्रपरिनतन
शोल है तथा जगत मिध्या-सप्य से विपरीत
श्र्थात परिवतनशोल है । जीव ब्रह्म एव न
जीव ब्रह्म तो. ही हे श्रपितु श्रपर -व्रह्म से
भिन्न है ।
के. के
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