कोठारी की बात | Kothari Ki Bat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
154
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)छाया जे
फिर, जैसी कि उसकी आदत हे; उसने एकाएक निणेंय कर लिया ।
मुख मोड़कर वहीं से लोट गई | शायद उसकी आँखों में आँसू भी थे--
मुके याद नहीं है । न
'अब उसे एक और चिन्ता हुई । वह जिस क्षेत्र में काम करती थी,
उसमें तो सब अरुण के परिचित थे । वहाँ काम करना आऔओर अरुण से
छिपना असम्भव था । ्तण-भर के लिए शारदा असमझस में पड़ गइ।
फिर उसने कहा, काम में हाथ डालकर छोड़ना शारदा का नियम नहीं है ।
अब जैसे हो, निभाना पड़ेगा ।
इसी दृद़-निश्वय से वह कलकत्ते गई । वहाँ उसने एक छोटी-सी
समिति स्थापित की ओर काम करने लगी. . -वह जो मोटर में से एक स्त्री
ओर दो युवकों ने गोली चलाकर तीन-चार पुलिसवालों को घायल किया
[, उसकी नेत्री शारदा ही थी । उसके बाद जो कलकत्त के पास ही एक
बम-दुघटना हुई थी; उसमें भी शारदा बाल-बाल बच निकली थी । फिर
पटने में जो रात में थाने में बम गिरा था, वह भी उसी का काम था । पर
उसके बाद न-जाने कैसे पुलिस को उसका पता लग गया; उसके वारण्ट
निकल गये--दो-तीन * विभिन्न नामों से । तब उसको मालूम हुमा कि
उससे निर्णय करने के समय *एक छोटी -सी 'भूल हो गई थी--नाम को
भूत होने पर भी उसका शरीर स्थूल था, आर उसके काम भूत के. नहीं,
पानवों के थे । उसके बाद वह एकदम लापता हो गइ--किसी ने उसका
ताम नहीं सुना, न उसका काम ही । बस, यहीं तक है शारदा की कहानी ।
अब अपनी कहानी कहूँ । तुम्हारे क्त्र में में बहुत देर तक काम करती
दी । तुम्हारे पकड़े जाने से काम अस्त-व्यस्त हो गया था, इसलिए हमारा
काम प्रायः संगठन का ही था । गाँव में छोटी-छोटी सेवा-समितियाँ बनाकर
श्र उनके मुखियाओं को दीक्षा देना, स्कूलों में छोटे-छोटे क्लब श्र
पूनियन बनाकर उन्हें किताबें पढ़ानी, बाहर सर करने ले जाकर संगठन
यादि के सिद्धान्त समझाने, शहर के मुहु्लों में वालर्टियर-दूल स्थापित
घरके उन्हें चुपचाप फौजी शिक्षा देनी, मोटर श्रौर टेक्सी-डाइवरों का
[नियन बनाकर उन्हें उनका महरव समसाना, यही हमारा बिशेष काम
प्रा । मैं स्वयं तो खुल्लमखल्ला फिर नहीं सकती थी, लेकिन देवदत्त, जयन्त
बेश्वनाथ ओर उनके साथी बड़े उत्साह से मेरी' सहायता करते रहे.।
मैंने जो नाम लिखे हैं, उनका किनसे आशय है, तुम समक ही जाष्मोगे। )
User Reviews
No Reviews | Add Yours...