मोक्षमार्ग - प्रकाशक भाग - 7 | Mokshamarg Prakashak Bhag - 7
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
586
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना (१३)
प्र पाच सात ग्रन्थोंकी टीका बनायवेका उपाय है। सो श्रायु की
श्रधिकता हुए बनेगी । झर घवल महाघवलादि ग्रन्थोके खोलवाका
उपाय किया वा उहाँ दक्षिण देससू पाँच सात भ्ौर ग्रन्थ ताडपत्राविधे
कर्णाटी लिपि मे लिख्या इहाँ पघारे हैं । याकु मल्लजी बाचे हैं, वाका
यथार्थ व्याख्यान करे हैं वा कर्णाटी लिपि मे लिखि ले हैं । इत्यादि
न्याय व्याकरण गणित छन्द ग्रलकारका याक॑ ज्ञान पाइए है । ऐसे
पुरुष महूत बुद्धिका धारक ई कालविषे होना दुलेंभ है ताते वासू
मिले सर्वे सन्देह दूरि होइ हैं ।”
इससे पड़ित जी की प्रतिभा भ्रौर विद्वत्ताका झनुमात सहज ही
किया जा सकता है । कर्नाटक लिपिमे लिखना, प्रथ करना उस भाषा
के परिज्ञानके बिना नहीं हो सकता ।
ग्राप केवल हिन्दी गद्य भाषाके हो लेखक नही थे, किन्तु श्रापमे
पद्य रचना करनेकी क्षमता थी श्रौर हिन्दी भाषाक साथ सस्कृत
भाषामे भी पद्य रचना अ्रच्छी तरहसे कर सकते थे । गोम्मटसार
ग्रन्थकी पूजा उन्दोने सस्कृतके पद्योमे ही लिखी है जो मुद्रित हो
चुकी है झ्रौर देहलो के धर्मपुराके नये मन्दिरके शास्त्रभडोरमें मौजूद
है। इसके सिवाय सदृष्टि झ्धघिकारका आदि अन्त मंगल भी सस्कृत
इलोकोमें दिया हुमा है श्र वह इस प्रकार है--
संदृष्टलंब्धिसारस्थ..... क्षपणासारमीयष: ।
प्रकाशिन: पद स्तौभि नेमिन््दोर्माधवप्र भो: 11
यह पद्य दयर्थक है । प्रथम अर्थमें क्षपणासारकें साथ लब्धिसार
की सद्ष्टिको प्रकाश करने वाले माधव चन्द्रके गुरु श्राचाय नेमिचन्द्र
सेद्धान्तिकके चरणोको स्तुतिकी गई है भ्रोर दूसरे भ्रथेमें करण लब्धि
के परिणामरूप क्मोंकी क्षपणाकों प्राप्त श्रौर समी चीन दृष्टिके प्रकाशक
नारायणके गुरु नेमिनाथ भगवानके चरणोंकी स्तुतिका उपक्रम किया
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