इन्द्र धनुष | Indra Dhanush
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
185
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन्द्र घनुष १४
गजल
बता तो क्या निगादे श्रव्वलीं के बाद हुश्रा ।
मुफके भी याद है कम कम वह दास्ताने फ़िराक ॥।
उमीद बन के न आ वे दिलों की दुनिया में ।
इसे समक नहीं सकते यह बदगुमाने * फ़िराक ॥)
जे एक बक़े-निगद 3 सामने से कौंद ४ गई |
वहीं थी रूहे मुददब्बत * वही है जाने “फ़िराक ” ॥
थे ग
ही ढ् के य
गजल
एक ्ालम पे बार* है हम लोग ।
किसके दिल का ,गुबार* हैं हम लोग ॥|
हम से है. गर्म सीनए-हस्ती ।
वह भड़कते शरार” हैं हम लाग ॥
इमने तोड़ी दृर एक क्दे-दयात* |
कितने बे श्रखतियार 1 * हैं हम लोग ||
ज़िन्दाबाद, इन्कलाब ज़िन्दाबाद |
सर-बकफ़ * १ सर-निसार * हैं हम लोग ॥
त्रासरे दर्द ज़िन्दगी के ““फ़िराक” ।
बेखुद श्रो बेक्रार हैं हम लोग ॥|
१. प्रथम दृष्टि: २. बुरी नियत वाले । ३. निगाह की बिजली |
४. नाच गई । ५. प्रेस का प्राण | ।
६. भार 1 ७. घूल । ८. चिंगारी। ६. जीवन के बन्धन ।
१०. विवश । ११. हथली पर सर लिये हुए । १४, सिर न्यौछावर करने
वाले ।
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