इन्द्र धनुष | Indra Dhanush

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Indra Dhanush  by श्री रघुपति सहाय - Shree Raghupati Sahay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन्द्र घनुष १४ गजल बता तो क्या निगादे श्रव्वलीं के बाद हुश्रा । मुफके भी याद है कम कम वह दास्ताने फ़िराक ॥। उमीद बन के न आ वे दिलों की दुनिया में । इसे समक नहीं सकते यह बदगुमाने * फ़िराक ॥) जे एक बक़े-निगद 3 सामने से कौंद ४ गई | वहीं थी रूहे मुददब्बत * वही है जाने “फ़िराक ” ॥ थे ग ही ढ् के य गजल एक ्ालम पे बार* है हम लोग । किसके दिल का ,गुबार* हैं हम लोग ॥| हम से है. गर्म सीनए-हस्ती । वह भड़कते शरार” हैं हम लाग ॥ इमने तोड़ी दृर एक क्दे-दयात* | कितने बे श्रखतियार 1 * हैं हम लोग || ज़िन्दाबाद, इन्कलाब ज़िन्दाबाद | सर-बकफ़ * १ सर-निसार * हैं हम लोग ॥ त्रासरे दर्द ज़िन्दगी के ““फ़िराक” । बेखुद श्रो बेक्रार हैं हम लोग ॥| १. प्रथम दृष्टि: २. बुरी नियत वाले । ३. निगाह की बिजली | ४. नाच गई । ५. प्रेस का प्राण | । ६. भार 1 ७. घूल । ८. चिंगारी। ६. जीवन के बन्धन । १०. विवश । ११. हथली पर सर लिये हुए । १४, सिर न्यौछावर करने वाले ।




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