प्राचीन काव्य कुसुमाकर | Pracheen Kavya Kusmakar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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1 चन्दु प्राचीन काव्य-कुसुमाकर नारकेलि फल परिठ दुज, चोक पूरी मनि मुक्ति । द्इ जु कन्या वचन वर, अति आनन्द. करि जुत्ति ॥३२॥। भुजंग प्रयात विद्वसिं वर लगन सिन्नो नरिंदं, चली द्वारद्वारं सु झानंद दु'द॑ ३३ रन गढ पत्तिसव बोलि छु ते, झाइयं भूप सच कट्ट'व सुत्ते ३४ 'चले दस सहस्सं 'असब्वार दान; परं पूरीय पैदल तेजु थान॑ ३४ सत्तमदगलितं से पंच दूती, मनों सांभ पाहार बुग पंति पंती ३' चले अग्गितेजी जुतत्ते तुखारं, चौवर चौरासी जु साकत्ति भार ३ कंठ नरग॑ नूप अनोप॑ सु लालें, रंग॑ पंच रंग॑ ढलक्कंत ढातुं 2: पंच सुरं सावदद वाजित्र वां, सहस सहदनाय ख्रग मोदि राज ३! समुद सिर सिखर उच्छाह छाहूं, रचित मंइपं तोरन॑ श्रीयगाहं ४' पद्सावती वि्लखिवर वाल वेली,कह्दी कीर सो वात तव दो छाकेली ४ मर जाहुँ वुम्द कीर दिल्ली सुदेसं, वर चहुवांन जुझआानो नरेसूं ४० ... दूहदा है आंसो तुम चहुवान वर अर कहि इद्दे सदेस । सांस सरीरहि जो रहे प्रिय प्रथिराज नरेस ॥४३। कचित्त प्रिय प्रधिसल सरेस, जोग लिखि कग्गर दिज्नो । लगुन वरग रचि सरव, दिन द्वाइस ससि लिन्नो ॥ से अर ग्यारद तीस, साप संवत परमानह । लोपित्री कुल 'युट्ढ, वरनि चरि रप्पहठु प्रानह ॥ दिप्प॑ंत्त दिप् उच्चरिय, वर इक पलक विलस्च न करिय । 'अलगार रयन दिन पंच महि, ज्यों रुकमनि कन्टर चरिय॥2४४॥।




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