समयसारनाटकभापा | Samayasaranatakabhapa
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१३ )
मदज्ञान महारुचिको निधान, उरको उजारों भारों न्यारो
& के ५. #*५, बिक च. # ७ ७ कि
बुद दलसो ॥ याते थिर रहे अनुभो विठास गहे फिरि
कवहों, अपनपो न कहे पुदूगलसों । यहे करतृतियों जुदाई
करे जगतसो, पावकज्यों भिन्न करे कंचन उपलर्सो ॥७४॥
सवेया इकलीसा -वानारसी कहे भेया भव्य सनो मेरी
शीख, केहू भांति कसेहू के ऐसो काज कीजिए । एकहू
मुदहरत मिथ्यातकों विध्वंस होइ, ज्ञानको जगाइ अंस हेस
चाह हक दर बट _च्ड
खोजि छीजिये । वाहीको विचार वाको ध्यानयहे कोतुदद,
याह्ी भरि जनम परम रस पीजिए । तजी मववासकी
विलास सरविकासरूप, अंतकारि मोहकों झनंतकाल जीजिए॥
सवेया इकतीसा-जाकी देहडातिसों दसो दिशा पत्रित्र
ह नर. ७, या, ५, कक ५. ७ श्र
भड, जाके तेज आगे सब तेजवेत रुके हैं । जाको रूपपने-
रखि थक्ति महारूपवेत, जाकी वपुवाससों सुबास और
लुके हें ॥ जाकी दिव्य धनी सुनि श्रवनकों सुख होत,
कर खा नि जन: च की
जाके तन लक्न अनेक आइ ढक हैं । ते जिनराज जाके
कहे विवहार गुन, निहचे निर्राखि सुद्धचतन सों चुकेंहें ॥७६॥
सवेया इ कती सा--जामें वाल पनों तरुन पनो चूद्धपनो ना हिं,
आयु परजत महा रूप महा वल हे । घिनाहि जनत जाके
तनमें अनेक गुन;अतिस विराजमान काया निरमलहे ॥जेस
विनुपवन समुद्र अविचलरूप, तेसे जाका मन अरु आसन
अचल हे । एसो जिनराज जयवंत होउ जगत में, जाकी
गुभ्रगाति महा सुकृति को फल है ॥ ७७ ॥
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दोहा--जिनपद नाहिं शुरीरकों,जिन पद चेतन मांहि ।
जिन वर्नन कक्ठु और है, यह जिन वनननांहि ॥ ७८ ॥
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