मेवाड़ गाथा | Mevaar Gaatha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
96
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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(३) प्रस्तावना ।
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प्राण देकर भो विमल निज मान रखने को प्रथा ।'
शुचि स्.ति जिसकी हृदय को मा-भौमिक-भत्ति से,
पूण करती भअतुलनोया दिव्य वेद्यत शक्ति से ॥
व वनिता बाल रखते ध्यान अपने मान का,
मोह कुछ रखते न वे निज देह अधवा प्राण का।
नष्ट हो सवेस, न पर बे त्यागते निज भीरता,
ध्येय उनको मुख्य छोतो देशको खाधोनता ॥
गेह धन खो, नित्य चाहै विपिन में फिरना पढ़े,
नित्य हो पद पद व्यथा दुख गत्ते ' में गिरना पढ़े,
हार उनका ढ़ छइृदय तो भो कदापि न खायगा,
अशग्नि-व्वाला तुल्य ऊपर को सदा हो जायगा ॥
देश गौरव रक्षणाथ सचेप्ट रहते हैं सभो,
नाम फिर उनका कलझ्ित दया कहों होगा कभो !
पुत्र, दुच्चिता, स््रात, सब सड़ोत यह गाते सदा :--
“डेश-बलि के सामनी है तुच्छ सारो सम्पदा !”
शौर्य साइस देख जिनके श्र, कहते “धन्य है,
“वोरता में विख में तुमसा न कोई अन्य है।”
छल रहित यह बीरता संसार में आदश है,
सन्णों का घास पूज्य पवित्र भारतवर्ष है ॥
है सुसाधक मित्र ! सबला नाम अबला का यहीं;
नारियाँ मेवार को सो क्या गई पाई. कह्ों ?
प्
* गत्त -गढढ़ा ।
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