सहकारिता परम्परागत एवं कानूनी | Sahakarita Paramparagat Evm Kanunee
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
124
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृष्ठभूमि, उद्देश्य एवं श्रव्ययन पद्धति 5
ममसिका निमा सकेगा । यह भी हो सकता हैं कि परम्परागत सहकारिता में कुछ
तत्व कानूनी सहकारिता के जोड़ने से वह मजबूत हो सके और परम्परागत
सहकारिता के कूछ तत्व कानूनी सहकारिता में जुड़ सकें तो इसकी टूटन रूके
ध्रौर उसे श्रविक सफलता मिल सके । उपरोक्त कुछ प्रश्नों को “खो ज-वीन' करने
के उद्देश्य से इस विपय को चुना गया हैं । हमारा प्रयास है कि दोनों प्रकार
की सहकारी व्यवस्थाश्रों का विश्लेपण किया जाय । कानूनी सहकारिता के वारे
में कई श्रष्पयन किये भी गये हैं तवा इनकी कमियां, कठिनाइयां सामान्य रूप से
स्पष्ट भी हैं । लेकिन परम्परागत सहकारिता का श्रव्ययन कम हुम्रा है । इसका
श्राधिक पक्ष तो प्रायः झछुता ही है । श्रत: परम्परागत सहकारिता के श्राधिक
पक्ष को विस्तार से देखने का प्रयास किया गया है 1
उद्दश्य :
ः इस श्रव्ययन का एक मुख्य पक्ष परम्परागत सहकारिता की व्यवस्था
की व्याख्या करना तथा उसमें श्रा रहे परिवर्तनों के कारणों का श्रव्ययन करना
है। परम्परागत सहक।रिता श्राथिक कार्यों में किस रूप में तथा किस सीमा तक
प्रचलन में रही है इस वात के श्रव्ययन पर विशेष जोर दिया गया है । सामा-
जिंक कार्यो, जेसे- विवाह, त्यौहार, घार्मिक श्रादि कार्यों में सहकार तथा जातीय
पंचायतों के माध्यम से विवादों के निपटारे की परम्परा के सम्वन्व में भ्रघ्ययन
सामग्री उपलब्ध है, लेकिन उत्पादन के क्षेत्र में किन कार्यों में तथा किस रूप में
सहयोग एवं सहकार रहा है, इसकी खोज करने की श्रावश्यकता है । ग्रामीण
जीवन में ऑ्राधिक कार्यों में जिस प्रकार का स्वरूप देखने में श्राया है उससे यह
स्पप्ट होता है कि उत्पादन के क्षेत्र में सहकार की मजदूत परम्परा रही है ।
लेकिन बदलती परिस्थितियों में वे परम्परा टूटती जा रही हैं । इसी प्रकार
कानूनी सहकारिता के विस्तार में भी श्रपेक्षित सफलता नहीं मिली है । वह मी
विचारणीय मुद्दा है कि परम्परागत सहकारिता का लाभ किस सीमा तक लिया
जा सकता है । इस वात पर विचार करना उपयोगी रहेगा कि कानूनी सहका-
रिता को गति तथा शक्ति प्रदान करने में परम्परागत सहकारिता की व्यवस्था
का किस रूप में कितना उपयोग किया जा सकता है श्रौर उसका स्वसूप
वया हो ?
इन वातों को ध्यान में रखते हुए भ्रघ्ययन के उद्देश्यों को निम्नलिखित
मुख्य मुद्दों के रूप में स्पप्ट किया जा सकता है :--
1. परम्परागत एवं कासूनी सहकारिता के ऐतिहासिक संदर्भ में वर्ते-
मान स्वरूप का विवेचन ।
2. परम्परागत सहकारिता के प्रकार तथा उसका परिवार, जाति
एवं समुदाय ते सम्वस्घ ।
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