सोमवल्लरी | Somavallari
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)नाम रूप है एक,जहाँ पर-
केन्द्र हद्धय का बनता,
व्यापक नील-निरकभ्र गगन मे-
एक चेँदोवा तनता,
भटक रहे मन के पंछी को-
एक केन्द्र मिल जाता,
एक बिन्दु भी लक्ष्य सिन्धु का-
आसानी से पाता |
मन के भटक रहे तारों की-
यही डोर है बन्धन;
नाम-रूप ही बन जाता है
जीवन का आकर्षण
प्रतिपल-प्रतिक्षण इच्छाओं का-
वेग उभरता रहता,
वीतराग के शिखर-शिखर से-
प्राण उतरता रहता |
प्राण-विहग को एक श्रृंग पर -
रखना कितना दुष्कर;
सुलभ उसे है, जिसने मन की-
गति को बाँधा कसकर।
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