सोमवल्लरी | Somavallari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाम रूप है एक,जहाँ पर- केन्द्र हद्धय का बनता, व्यापक नील-निरकभ्र गगन मे- एक चेँदोवा तनता, भटक रहे मन के पंछी को- एक केन्द्र मिल जाता, एक बिन्दु भी लक्ष्य सिन्धु का- आसानी से पाता | मन के भटक रहे तारों की- यही डोर है बन्धन; नाम-रूप ही बन जाता है जीवन का आकर्षण प्रतिपल-प्रतिक्षण इच्छाओं का- वेग उभरता रहता, वीतराग के शिखर-शिखर से- प्राण उतरता रहता | प्राण-विहग को एक श्रृंग पर - रखना कितना दुष्कर; सुलभ उसे है, जिसने मन की- गति को बाँधा कसकर।




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