यात्री | Yatri
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
100
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रसन्न कर सकते हूं और न श्रानन्द दे सकते हूं ।””
इसपर उकाव को बड़ा क्रोव झाया और उसने कहा,
“प्रसन्नता श्रौर श्रानन्द के वच्चें ! ढीठ पक्षी । पंजा मारूं
तो दम निकल जाए तेरा । मेरे पंजे के वरावर तो हो नहीं
और यह हाथ भर की जिह्न
इसपर कौझ्रा उड़कर उकाव की पीठ पर आरा वैठा और
लगा उसके पर नोचने ।
उकाव भुकलाकर ऊंचा-ऊंचा उड़ने लगा कि किसी
प्रकार इस तुच्छ पक्षी से पीछा छूटे, किन्तु कोबरा ऐसा जम-
कर बैठा कि अन्त में हारकर उसे नीचे ही उततरना पड़ा ।
उकाव पहले से भी श्रघिक क्रोध में भर गया; उस बुरे समय
को कोसता हुभ्रा, उस तुच्छ पक्षी को झ्रपनी पीठ पर लिए
वह उसी चट्टान पर श्रा गिरा ।
इसी समय जाने कहां से एक कछवी झ्रा निकली श्रौर
इस हंसानेवाले दृश्य को देखकर कुछ इस प्रकार से हंसी कि
हंसते-हंसते लोटपोट हो गई ।
उकाव ने घमंड से उसको तरफ देखते हुए कहा, “ग्रो
सदा से भूमि पर रेंगनेवाले कीड़े ! भला तुम्हें किस वात
पर हंसी आरा रही है ?”
कछवी वोली, “तुम घोड़ा वन गए हो श्रौर एक नन्हा-
सा पक्षी तुमपर सवारी कर रहा हं। पर यह पक्षी है तुमसे
बड़ा ही ।
इसपर उकाव वोला, “श्री, तुम अपना रास्ता नापों ।
हमारी घरेलू वात है, मेरी घ्ौर मेरे भाई कौए की ।
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