नवयुवकों से | Navayuvakon Se
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
226
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)0-८
जाता । जब हम सिनेमा देखते होने हू तब दृथ्य श्रौर फ्रियानपरिवर्तन
से सगति रखने के लिए हम बहुत शीघ्रता से सोचते है। सिनेमा श्रपने
प्रेक्षको को यह जो क्षिप्रता प्रदान करता है श्र उनसे भी इसकी अपेक्षा
रखता है, इसका मानसिक विकास पर एक चिशिप्ट प्रभाव पड़ता है ।
यदि हम झ्रावुनिक जीवन के दौबेल्यजनक प्रभावों भर स्तायविक तनाव
से मुक्त होना चाहते है, यदि हम सिनेमा और रेडियो, सनसनी फंलाने
चाले समाचार-पत्नो श्र स्वयभू नेताश्रो के निरन्तर होने वाले भ्राक्रमणों
से भ्रपनी रक्षा करना चाहते है, तो हमें मनुष्यों के मन में सुरक्षा-पक्ति
वनानी होगी, उनमे चिरस्थायी रुचियों का वीजारोपण करना होगा ।
हमको उच्च कोटि के ग्रन्थों को, जिनसे मानव जाति के जीवन श्रौर
श्रारव्ध से सम्बन्वित वास्तविक महत्वपूर्ण प्रश्नो पर विचार किया गया
होता है, पढने का श्रम्यास डालना चघाहिए। हमको इन महान् विपयो पर
स्वय भी विचार करना चाहिए । किन्तु, श्रात्मचिन्तन से यह झभिष्राय
नहीं हैं कि जुन्य में, निराघार, सवंधा एकाकी चिन्तन किया जाए । हमे
दूसरों की, चाहे वे जीवित हो या मुत्त, सहायता की भ्रावइ्यकता है । सभी
युगो के महान व्यक्तिपों कवियों, 'ससार के श्रमान्य विधायकों,” दा्ेंनिको,
सुजनयील विचारकों प्रौर कलाकारों की सहायता प्राप्त करना भ्रावध्यक
है। जहाँ विज्ञानों मे केवल समसामयिक व्यक्तियों से ही हमको सहायता
मिल सकती है, वहाँ ललित साहित्वों में हमे हर जाति श्रौर हर काल के
बहुत ही महान व्यक्तियों की सहायता प्राप्त होती है। जीवन के गहन से
गहन स्तर पर, परन्नह्मा परमेव्वर की प्रकृति के स्वरूप--विस्तार की,
चिध्व की अव-ब्यवस्या शोर मनुप्य की क्षति तथा झाक्तिह्रीनता के
अन्तर्रहन्य फो इतिहास प्रभासित करना हैं । इतिहास की घटनाएं सचुप्यों
दो श्रात्मा्षो मे घटित होने चाली घटनाओं का प्रतिविम्व होती हैं ।
यदि यह देश विविध पश्वित॑नों झौर घटना-क्रमो में से गुजर कर
भी म्पना भ्रस्तिस्व चचाये रस सका है, तो इसकें कारण हू -- हमारे यहाँ
फे लोगो पे कतिपय मानसिक रवभाव और मान्यताएं, जिनको जाति या
धर्म की विभिन्नता के होते टुए भी सबने अपनाये रगया है घोर जिनको
दे कभी सिलाजलि नहीं देंगे । सत्य यह है कि सवुप्य के मन श्ौर विस्व
नदउुबको से. ६४
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