अर्थशास्त्र के सिद्धान्त | Arthsastra Ke Siddhant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१० 1] श्र्थशास्त्र के सिद्धान्त भी एक बड़ी कटिनाई का सामना करना पडता है जो यह कि इस प्रकार विभाजित की हुई भीतिक श्रोर श्रभीतिक क्रियाशों का एक दूसरे से इतना घनिष्ठ सम्बन्ध देखने में पाता है कि एक को दूसरे से पृथक करना ठीक होगा । यह निश्चय है कि रोविन्सन ऋ्ूसो के पास समय श्रौर शक्ति सीमित होंगे, जिस कारण यदि वह तोते से बात करने में भधिक समय लगा दे, तो उसकी दूसरी श्रियाग्ों मे वाघा पड़ जायेगी । इसी प्रकार, पहले की क्रियाम्ों पर झ्घिक समय लगाने या प्र्थ यह होगा कि दूसरे प्रकार की श्रियाधों के लिए समय का श्रमाव हो जाय । स्पप्टतः भौतिक श्रौर प्रमौतिक नियायें एक दूसरे पर निर्मर (0८96706010 हैं तथा किसी एक के स्वभाव शौर महँत््व को जानने के लिये दूसरे का श्रध्पययन करना श्रावश्यक है । ( ३) दोनों में भेद करने से किसी उद्देश्य की प्रति नहीं होती, वरबू भौतिक श्रौर श्रमौतिक फ्रियाप्रों के बीच निर्णय श्रथवा चुनाव (00८८) को समस्या ज्यो की ह्यो बनी रहती है । मनुष्य की क्रियाश्रों का उतकी श्रावश्यकता-यूति तथा सुख पर प्रमाव जानने के लिए दोनों ही प्रबार की नियामों का अध्ययन करना श्रावश्यक है । इसके बिना प्रथशास्त्र श्रधुरा रहेगा श्रोर अावश्यवता की पूरति के सभी पहलुम्रो तथा उनकी ““समस्तता” ((०1211%) को समझना कठिन होगा । श्रत: यह ध्रावश्यक है कि इस प्रकार के भेद पर ध्यान न दिया जाय, वयोकि इस्त भेद के बिना भी श्र्थशास्त का प्रघ्ययन श्रथिक सच्चा एव श्रधिक लामदायक होगा । (४) प्रो० रोविन्स का विचार है कि श्राधिक सिद्धान्तो के श्रध्ययन में भौतिक श्रौर श्रभौतिक दोनों का मिश्रण है, मजदूरी का कोई भी ऐसा सिद्धान्त, जो उन सभी भुगतानों पर ध्यान नहीं देता है, जो श्रमीतिक सेवाग्रों के लिये दिये जाते हैं प्रयवा भ्रभीतिक उद्देश्यों पर व्यय किये जाते हैं, सहनीय नहीं हो सकता है ।” इसी प्रकार के उन्होंने श्रीर भी श्रनेक उदाहरण अ्रस्तुत किये हैं । शर्त में वे यहाँ तक कहते हैं, “अर्वंशास्त्र का सम्बन्ध किसी भी चीज से हो सकता है, किन्तु इतना निश्चय है कि इसका सम्बन्ध “केवल” भौतिक कह्याण के वार्यों से नहीं है 7 (71 ) श्रपंशास्त्र का कल्याण से कोई सम्दन्ध नहीं होना 'चाहिए--रोविन्स ने केवल भौतिक शब्द पर ही झ्ाक्षेप नही किया, वर वे तो ऐसा सममते हैं कि श्रयंशास्त्र का कत्याणु (फ़र्टाकिटी से भी कोई सम्बन्ध नहीं रहना चाहिए। कल्याण के हप्टिकोण से प्र्थशास््र का अ्रघ्ययन करने में कुछ विशेष कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं । उदाहरणस्वरूप-- (१) चूंकि मादक पदार्थ माँग की तुलना में दुलेंम हैं, इसलिए उनका मी मुल्य होता है श्रौर इस नाते उनका भी श्रयंशास्त्र में श्रध्ययन होता चाहिये, परन्तु उनका कल्याण से कोई सम्बस्ध नही है । ( २) साथ ही स्वय कल्याण का विचार मी वोई 'निश्चित' विचार नहीं है । समय, व्यक्ति, देश श्रौर परिस्थितियों के श्रद्धुसार बल्याण सम्बन्धी विचारों में श्रन्तर होता रहता है । उसे परिमाणात्मक रूप से (0०००॥20४८४) मापा नदी जा सकता है (दिव्य रूपी पसाने द्वारा भी नहीं) । कल्याण का विचार इतना भस्पप्ट श्रीर श्रनिश्चित है कि उसे लेकर किसी विज्ञान का निर्माण नहीं किया जा सकता दै । गे. फट ए रवडट$ भला वात वो ५िठड्ट इप्ताड ज़तिटि फ़टाड 810 था प्ाफ्राअटएं2 इल्रंट्डड एा. फटाद &छूटप 0 पा डटा1वा टावड भण्य!त 96 0 1हा8016.”-एपर००9ि05ड : तीए &उडताए ए दि दाह दावे जाइवपिट्ाटड ठ हल्णाणाट अलंशाद्, 0. है. दे. *प्रप्ियाडिश्टा' रिघणाणंदड 15 ट०पल्टल्ठें भा, ॥ 15. च01. ध्णाल्टाएडतें सा 10८ ध्वफड$ 0 घ्राबट्संडं भटोदिड 25 उपटी,”-नवंब,, 9. 7,




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