सामवेद संहिता | Samwed Sanhita

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Samwed Sanhita  by श्री सायणाचार्य - Shri Sayanacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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जोड़ो ( ये हि, ) जो ( तव ) तुम्हारे ( शाशवः ) शीघ्रगामी (सबक (साघव:) सुशील ( श्रश्वासः) घोड़े ( अझरम्‌ ) ठीक ( बददन्ति ) तुम्हारे रथ को लजाते दे ॥ ४ ॥ नित्वा नक्ष्य विश्पते, दयमन्तं घीमहे वयम्‌ सवीरमग आहत ॥ ६ ॥ ( नदय ) उपासना करने योग्य ( विश्पते ) 'घनपते ( श्ाहुत ) अनेकों यजमानों से होमेडुण (अन्न ) हें श्रम्निदेव ( यमन्तम्‌ ) | दीपष्तिमान्‌ ( खुवीरम्‌ू ) जिस की स्तुति करनेवाले कठ्याण के भागी होते हैं ऐसे (त्वा ) तुम्ह ( वयम्‌ ) हमने ( निधीमहे ) स्थापन किया है ॥ ६ ॥ ह अग्निभघा दिव: ककुप्पतिथिव्या यम । पा *रेता < सिजिन्वति ॥ ७ ॥ ||. (मर्घी ) देवताओं में श्रेष्ठ ( दिवा. चछव्‌ ) यंफेक से ऊचा न 4 ( पूथिव्या!, पति: )पृथियी का स्वासी ( झयं, डाझि, पर अन्ि ( आअपां १ रेतासि ) जला कं चीय्य रूप स्थावर जद्गम प्राणिया को ( [जन्वति ) | प्ररणा करता दे ॥ 3 ॥ ४७ क इयम्‌ प त्वमस्माक < सनिं गायत्र नव्या< सम है न ले ॥ सगन दब प्रचाव ॥ ८ ॥ |. (अग्ने ) हे आम्देय ! ( झरमाकम्‌ ) हमारे १ इसमएस्‌ ) इस झठु- | छान किये जाते हुए (सनिम्‌ ) हविदान को ( नध्योसस ) तिनवीन ( गायत्रमू ) स्तुतिरूप चचन का ( देवेप ) देवताओं कं श्आगे 4 ( प्रचोचः ) कहां ॥ ८ ॥ त॑ त्वा गोपवनो गिरा जनिष्टदग्ने आड्विर। । स पाचक श्रघी हवस ॥ & ॥ ( अगने ) हैं झम्चिदेव ! ( त॑, त्वास ) उन श्रापको ( गोपवनः ) गोए ं वन ( गिरा ) स्तृतिसे ( जनिएत्‌ ) उत्पन्न करत है. था बढ़ाता है । ( झजड्ञिर: ) है सब्र गमन करनेचारं ( पायक ) शोधघक अधिदेव ! ( दवम्‌ ) श्ाह्नकों ( थ्धि ) खुनो ॥ & ॥ 'फनचबकन पे चना का चेन उ हक का जाके का बरस चर उन कद के सकें रन चकन कफ जढकों पे चर फ चक ऊ सदा उनन्छऊ- रू... 1




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