सामवेद संहिता | Samwed Sanhita
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
490
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जोड़ो ( ये हि, ) जो ( तव ) तुम्हारे ( शाशवः ) शीघ्रगामी (सबक (साघव:)
सुशील ( श्रश्वासः) घोड़े ( अझरम् ) ठीक ( बददन्ति ) तुम्हारे रथ को
लजाते दे ॥ ४ ॥
नित्वा नक्ष्य विश्पते, दयमन्तं घीमहे वयम्
सवीरमग आहत ॥ ६ ॥
( नदय ) उपासना करने योग्य ( विश्पते ) 'घनपते ( श्ाहुत )
अनेकों यजमानों से होमेडुण (अन्न ) हें श्रम्निदेव ( यमन्तम् ) |
दीपष्तिमान् ( खुवीरम्ू ) जिस की स्तुति करनेवाले कठ्याण के भागी
होते हैं ऐसे (त्वा ) तुम्ह ( वयम् ) हमने ( निधीमहे ) स्थापन
किया है ॥ ६ ॥ ह
अग्निभघा दिव: ककुप्पतिथिव्या यम ।
पा *रेता < सिजिन्वति ॥ ७ ॥
||. (मर्घी ) देवताओं में श्रेष्ठ ( दिवा. चछव् ) यंफेक से ऊचा न
4 ( पूथिव्या!, पति: )पृथियी का स्वासी ( झयं, डाझि, पर अन्ि ( आअपां
१ रेतासि ) जला कं चीय्य रूप स्थावर जद्गम प्राणिया को ( [जन्वति )
| प्ररणा करता दे ॥ 3 ॥
४७ क
इयम् प त्वमस्माक < सनिं गायत्र नव्या< सम
है न ले
॥ सगन दब प्रचाव ॥ ८ ॥
|. (अग्ने ) हे आम्देय ! ( झरमाकम् ) हमारे १ इसमएस् ) इस झठु-
| छान किये जाते हुए (सनिम् ) हविदान को ( नध्योसस ) तिनवीन
( गायत्रमू ) स्तुतिरूप चचन का ( देवेप ) देवताओं कं श्आगे
4 ( प्रचोचः ) कहां ॥ ८ ॥
त॑ त्वा गोपवनो गिरा जनिष्टदग्ने आड्विर। ।
स पाचक श्रघी हवस ॥ & ॥
( अगने ) हैं झम्चिदेव ! ( त॑, त्वास ) उन श्रापको ( गोपवनः ) गोए
ं वन ( गिरा ) स्तृतिसे ( जनिएत् ) उत्पन्न करत है. था बढ़ाता है
। ( झजड्ञिर: ) है सब्र गमन करनेचारं ( पायक ) शोधघक अधिदेव !
( दवम् ) श्ाह्नकों ( थ्धि ) खुनो ॥ & ॥
'फनचबकन पे चना का चेन उ हक का जाके का बरस चर उन कद के सकें रन चकन कफ जढकों पे चर फ चक ऊ सदा उनन्छऊ- रू...
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