भारतीय ज्योतिष का इतिहास | Bhartiiya Jyotisha Ka Itihas
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
33 MB
कुल पष्ठ :
307
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रारम्भिक बाते प्र
उद्यत है । दुक््तुल्यता--गणना में ऐसा सुधार करना कि उससे वहीं परिणाम
निकले जो वेध से प्राप्त होता ही--आज के प्राय सभी पडितो को पाप-सा प्रतीत होता
है। वेध की अवहेलना अभी इसलिए निभी जा रही ह कि सूर्य-सिद्धान्त के गणित
से निकले परिणाम और वेध में अभी घण्टे, दो घण्टे, से अधिक का अन्तर नहीं पडता,
और घण्टे , दो घण्टे , आगे या पीछे पूर्णिमा बताने से साधारण मनुष्य साधारण अवसरों
पर गलती पकड़ नही पाता । इसी से काम चला जा रहाह ।. ग्रहण के अवसरो पर
अवश्य घण्टे भर की गलती सुगमता से पकडी जा सकती हूं, परन्तु पडितो ने, चाहे
वे कितने भी कट्टर प्राचीन मतावलम्बी हो, ग्रहणो की गणना आधुनिक पाइचात्य
रीतियो से करना स्वीकार कर लिया हू । अस्तु। चाहे आज का पढड़ित कुछ
भी करे, ऋग्वेद के समय के लोग साल भर तक किसी भी प्रकार तीस दिन ही प्रति
मास न मान सके होगे । सम्भवत कोई नियम रहा होगा, ऐसे नियम वेदाग-
ज्योतिष मे दिये ह और उनकी चर्चा नीचे की जायगी ।. परन्तु यदि कोई निरम
न रहे होगे तो कम-से-कम अपनी आँखों देखी परर्णिमा के आधार पर उस काल के
ज्योतिषी समय-समय पर एक-दो दिन छोड दिया करते रहे होगे ।
वर्षे मे कितने मास
यह तो हुआ मास मे दिनो की सख्या का हिसाब । यह भी प्रइन अवद्य उठा
होगा कि वर्ष में कितने मास होते हे ।. यहाँ पर कठिनाई और अधिक पडी होगी ।
पुर्णिमा की तिथि वेध से निश्चित करने मे एक दिन, या अधिक से अधिक दो दिन,
की अशुद्धि हो सकती है । इसलिए बारह या अधिक मासो में दिनो की सख्या
गिनकर पडता बंठाने पर कि एक मास में कितने दिन होते हे अधिक त्रुटि नही रह
जाती है ।
परन्तु यह पता लगाना कि वर्षक्ितु कब आरम्भ हुई, या दारदऋतु कब आयी,
सरल नही है । पहला पानी किसी साल बहुत पहले, किसी साल बहुत पीछे, गिरता
हे । इसलिए वर्षाऋतु के आरम्भ को वेध से, ऋतु को देख कर, निश्चित करने में
पत्द्रह दिन की त्रुटि हो जाना साधारण-सी बात हूं ।. बहुत काल तक पता ही न चला
होगा कि एक वर्ष मे ठीक-ठीक कितने दिन होते हे । आरम्भ में लोगो की यही
धारणा रही होगी कि वर्ष भे मासो की सख्या कोई पूर्ण सख्या होगी । बारह ही
* क्योकि चन्द्रग्रहण का मध्य परर्णिमा पर और सूयंग्रहण का मध्य अमावस्या
पर ही हो सकता हें ।
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