भद्रबाहु संहिता | Bhadrabahu Sanhita (1959)ac 6241

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Bhadrabahu Sanhita (1959)ac 6241 by डॉ. नेमिचन्द्र शास्त्री - Dr. Nemichandra Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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16 भद्बाहुसंहिता जन ज्योतिष का विकास जैनागम की दृष्टि से ज्योतिष शास्त्र का विकास विद्यानुवादाग और परि- कर्मों से हुआ है ! समस्त गणित-सिद्धान्त ज्योतिष परिकर्मों मे अकित है और अष्टाग निमित्त का विवेचन विद्यानुवादाग में किया गया है । षट्खण्डागम घवला टीका! मे रौद्र, श्वेत, मंत्र, सारभट, दैत्य, वैरोचन, वैश्वदेव, अभिजित्‌, रोहण, बल, विजय, नैऋ त्य, वरुण, अयंमन्‌ जौर भाग्य ये पन्द्रह मुहुत्ते आए हैं । मूहर्तों की नामावली वीरसेन स्वामी की अपनी नह्दी है, किन्तु पुर्व परम्परा से श्लोकों को उन्होंने उद्घृत किया है। अत: मूहृत्तं चर्चा पर्याप्त प्राचीन है । प्रश्न व्याकरण में नक्षत्रों के फलों का विशेष ढंग से निरूपण करने के लिए इनका कुल, उपकुल और कुलोपकुलो में विभाजन कर वर्णन किया है। यह वर्णन-प्रणाली सहिता शास्त्र क॑ विकास मे अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। बताया गया है कि“--“धनिष्ठा, उत्तराभाद्र पद, अश्विनी, कृत्तिका , मृगशिरा, पुष्य, मघा, उत्तरा फाल्गुनी, चित्रा, विशाखा, सुल एवं उत्तराषाढ़ा ये नक्षत्र कुलसज्ञक, श्रवण, पूर्वाभाइपद, रेघती, भरणी, रोहिणी, पुनवंसु, आश्लेषा, पूर्वाफाल्गुनी, हस्त, स्वाति, ज्येष्ठा एवं पूर्वाषाढ़ा थे नक्षत्र उपकुल-सज्ञक और अभिजित्‌ शतभिषा, आद्रा एव अनुराधा कुलोपकुल सज्ञक है ।” यह कुलोपकुल का विभाजन पूर्णमासी को होने वाले नक्षत्र के आधार पर किया गया हैं । अभिप्राय यह है कि श्रावण मास के धनिष्ठा, श्रवण और अभिजित्‌, भाइपद मास के उत्तराभाद्रपद, पूर्वाभाद्रपद और शतभिषा, अश्विन मास के अश्विनी और रेवती, कार्तिक मास के कृत्तिका और भरणी, अगहन या मागशीर्ष मास के मृयशिरा और रोहिणी; पोष माष के पुष्य, पुनर्वेसु और आद्वा, माघ मास के मघा और आश्लेषा, फाल्गुमी मास के उत्तराफाल्गुनी और पूर्वाफास्गुनी, चैत्र मास के चित्रा और हस्त, वैशाख मास के विशाखा भर स्वाति; ज्येष्ठ मास के ज्येष्ठा, मूल और अनुराधा एवं आषाढ़ मास के उत्तराषाढा और पुर्वाषाढा नक्षत्र बताये गये है । प्रत्येक मास 1 देखें--घवला टीका, जित्द 4, पु०् 318 । 2 ता कहते कुला उवबकुला डुलावकुला जहिनेति वदेज्जा । तत्थ खलू इमा बारस छुला बारस उपडुला चत्तारि कुलावकुला पण्णत्ता । बारसकुला त. जहा--धघणिट्ढा कुल, उत्तरा- भददवयाकुल, अस्सिगी कुल, कत्तियाकुल, मिगसिरकुल, पुस्सोकुल, महाकुल, उत्तराफग्गुणीकुल चिताकुल, विसाहाकुल, मूलोकुल, उत्तरासाणकुल ॥ बार्स उवकुला पण्णत्ता त जहां सबणों उबकुल, पुव्वभदवया उपकुल, रेवती उवकुल, भरणि उवकुल, रोहिणी उबकुल , पुणव्वसु उबकुल, असलेसा उबकुल, पुब्चफरगूणी उबकुल , हत्थो उबबुल, साति उवकुल, जे टूठा एमकुल पुष्वासाढा उवकुल ॥ चत्तारि कुलावकुल पण्णत्ता त जहा--अभिजिति कुलावसनभिसथा कुलावकुल कुल, अईछुलबडुल अगु रहा कुलावकुल ॥---पु० का० 10, 5 थी




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