भारतीय वाड्मय भाग - 2 | Bharatiy Vadmay Bhag - 2

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Bharatiy Vadmay Bhag - 2  by डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Dr. Lakshisagar Varshney

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतीय चाडमय भागनार २ अभी गादजहाँनाबादके महलोंपे बाहर शाहीफ्ौजी बज़ारोंमें होता था । विदेशी राज्य होनेके कारण अरबी-फ़ारसी दब्दोंका प्रचार तो हो ही गया था | विदेशियोंपे बातचीत करनेके लिओ जब देशी बोलीमें अरवी-फ़ारसी शब्दोका मिश्रण होने लगा तो अुदुका जन्म हुआ । अतिहासिक दृष्टिसि साहित्यिक अुर्दू आधुनिक साहित्यिक दिन्दीसे कुछ पुरानी है । अुर्दका साहित्यमें प्रयोग दक्विण हैदराबादके मसुसलमानी दरबारसे आरम्भ हुआ और औरंगाबादके वली साहब अद साहित्यके जन्मदाता माने जाते हैं। जिस प्रकार भाषा-विज्ञानकी दृष्टिसे हिन्दी और अदू खड़ीबोलीके दो साहित्यिक रूप मात्र हैं | दि ल्‍ खड़ीबोलीका अक और रूप है, जिसे हिन्दुस्तनी कहते हैं । यह नाम यूरोपियनोंका दिया हुआ है । आधुनिक साहित्यिक हिन्दी या अद भाषाका परिमाजित बोलचालका रूप हिन्दुस्तानी कहा जाता है । असमें देशी-विदेशी सभी प्रकारके प्रचलित शब्द काममें आते हैं । किंतु व्यवहार में हिन्दुस्तानीका झकाब अदको ओर अधिक रहता है । यदि असे अत्तर भारतके कुछ . शिक्पित लोगोंकी बोलचालकी अद कहा जाय तो अधिक अुपयुक्ता होगा | जनसाधारणमें हिन्दुस्तानीका प्रयोग बहुत कम पाया जाता है। साधारण अधिक्पित लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक बोलियोंका व्यवद्दार करते हैं, जेसे, त्रज, अवधी, कन्नौजी आदि | दक्पिणकें ठेठ द्रविड़ प्रदेशोंको छोड़कर खड़ीबोलीका यह व्यावहारिक रूप अत्तर भारतमें समझ लिया जाता है । हिन्दुस्तानीका कोओी साहित्य नहीं है और वह देवनागरी और फ़ारसी दोनों लिप्योंगें लिखी जा सकती है। बाँगरू--यह बोली पंजाबके दक्पिण-पूर्वीं भाग या बाँगर प्रदेश बोली जाती है । अुसे जादू या हरियानी भी कहते हैं | . वह यदि हिन्दीकी सीमांत बोली मान ली जाय तो अनुचित न होगा । दिल्‍ली, करनाल,




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