भारतीय वाड्मय भाग - 2 | Bharatiy Vadmay Bhag - 2
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
79
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ लक्ष्मीसागर वार्ष्णेय - Dr. Lakshisagar Varshney
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भारतीय चाडमय भागनार २
अभी
गादजहाँनाबादके महलोंपे बाहर शाहीफ्ौजी बज़ारोंमें होता था । विदेशी
राज्य होनेके कारण अरबी-फ़ारसी दब्दोंका प्रचार तो हो ही गया था |
विदेशियोंपे बातचीत करनेके लिओ जब देशी बोलीमें अरवी-फ़ारसी शब्दोका
मिश्रण होने लगा तो अुदुका जन्म हुआ । अतिहासिक दृष्टिसि साहित्यिक
अुर्दू आधुनिक साहित्यिक दिन्दीसे कुछ पुरानी है । अुर्दका साहित्यमें
प्रयोग दक्विण हैदराबादके मसुसलमानी दरबारसे आरम्भ हुआ और
औरंगाबादके वली साहब अद साहित्यके जन्मदाता माने जाते हैं। जिस
प्रकार भाषा-विज्ञानकी दृष्टिसे हिन्दी और अदू खड़ीबोलीके दो
साहित्यिक रूप मात्र हैं | दि ल्
खड़ीबोलीका अक और रूप है, जिसे हिन्दुस्तनी कहते हैं । यह
नाम यूरोपियनोंका दिया हुआ है । आधुनिक साहित्यिक हिन्दी या अद
भाषाका परिमाजित बोलचालका रूप हिन्दुस्तानी कहा जाता है । असमें
देशी-विदेशी सभी प्रकारके प्रचलित शब्द काममें आते हैं । किंतु व्यवहार में
हिन्दुस्तानीका झकाब अदको ओर अधिक रहता है । यदि असे अत्तर
भारतके कुछ . शिक्पित लोगोंकी बोलचालकी अद कहा जाय तो अधिक
अुपयुक्ता होगा | जनसाधारणमें हिन्दुस्तानीका प्रयोग बहुत कम पाया
जाता है। साधारण अधिक्पित लोग अपनी-अपनी प्रादेशिक बोलियोंका
व्यवद्दार करते हैं, जेसे, त्रज, अवधी, कन्नौजी आदि | दक्पिणकें ठेठ
द्रविड़ प्रदेशोंको छोड़कर खड़ीबोलीका यह व्यावहारिक रूप अत्तर भारतमें
समझ लिया जाता है । हिन्दुस्तानीका कोओी साहित्य नहीं है और वह
देवनागरी और फ़ारसी दोनों लिप्योंगें लिखी जा सकती है।
बाँगरू--यह बोली पंजाबके दक्पिण-पूर्वीं भाग या बाँगर प्रदेश
बोली जाती है । अुसे जादू या हरियानी भी कहते हैं | . वह यदि हिन्दीकी
सीमांत बोली मान ली जाय तो अनुचित न होगा । दिल्ली, करनाल,
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