विनोबा की ज्ञान - गंगा में | Vinoba Ki Gyan Ganga Men

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Vinoba Ki Gyan Ganga Men by डॉ ज्ञानवती दरबार - Dr. Gyanvati Darbar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: १५ : अध्यापक भी शंका-समाधान के लिए उनके पास आते थे । गणित में विनोबा को विशेष रुचि रही । वह कई बार मजाक में कहा करते हैं कि_अध्यात्म- शास्त्र के बाद अगर में मेरी रुचि हैं तो वह गणितशास्त्र में । गभियों कौ छा छुट्टियों में विनोबा श्रमण-आदि के लिए किसी शीतल स्थान पर या किसी कुटुम्बीजन के यहां न जाकर सहसा किसी सहपाठी मित्र की सेवा करने जा पहुंचते थे और उसकी सेवा-दुश्नुषा में ही अपनी छुटिटयां व्यतीत करते थे । इसी सेवा के आकर्षण तथा आध्यात्मिक प्रभाव से अनेक सहपाठी आज भी उनके साथ उनकी आज्ञा के अनुसार रचनात्मक कामों में लगें हैं । उन्हींके कारण एक-दो सहपाठियों ने ऊंची डिग्रियों का मोह तक छोड़ दिया और कालेज से निकलकर देश-सेवा के काम में लग गये । विनोबा को डिग्रियों का मोह नाम-मात्र को भी नहीं था । उन्होंने अनासक्त भाव से अपनी सभी सार्टिफिकेटों को अग्नि की भेंट चढ़ा दिया था और उनसे निकछती लौ की ओर इंगित करते हुए अपने मित्रों से कहा था, “देखो, ये कंसे प्रकाशित हो रहे हैं ! ” हिमालय कौ ओर आध्यात्मिकता की ज्योति बाल्यकाल से ही उनके हृदय में जल रही थी और एक दिन ऐसा आया कि उनमें हिमालय जाने की इच्छा बलवती हो उठी । उन्होंने अपना यह निक्चय अपने साथियों को बताया । फिर क्या था, तीन-चार साथियों के साथ वह निकल पड़े । कुछ समय काशी में रुके । वहां एक स्कूल में पढ़ाने का काम किया । पढ़ाने के पारिश्रमिक-स्वरूप रोज के दो पैसे वह लेते थे, जिसमें से एक पैसे की शकरकंद तथा एक पैसे का दही लेकर संतुष्ट रहते । पढ़ाने के बाद झेष समय में गंगा के तीर पर बेठकर रुछोकों की रचना करते और शाम को वे सारे दलोक गंगामैया को अपित कर देते । उनके साथियों में से एक का नाम भोला था । विनोबा का वह पक्का भक्त था । हर कोई जानता था कि विनोबा बिना परिश्रम किये खाना पसन्द नहीं करते । अतः वह भी चाहे लकड़ी काटना, लकड़ी ढोना आदि काम ही क्यों न करना पड़े, शारीरिक श्रम अवश्य करता था । आज भी यह बात 'विनोबा के जीवन में है । उन्होंने इसे अपना




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