श्री तुकाराम चरित्र जीवन और उपदेश | Shri Tukaram Charitr Jivan Aur Charitr

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Shri Tukaram Charitr Jivan Aur Charitr  by लक्ष्मण रामचन्द्र पांगारकर - Lakshman Ramchandra Paangarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१४ ) बाद सन्तगुणकीर्तनोंमें तुकारामका बहियोंके तारे ज ” तथा उनके सदशरीर वेकुण्ठ सिधघारने इन दोनों ही घरनाओंका कार्तन किया गया है दिवदिनकेसरी मश्वसुनीश्वर देवनाथ महाराज आदिने अपने पदोंमें तुकाराम महाराजकी स्तुति करते हुए इन दो कथाओंका स्मरण कराया है. समर्थ श्रीरामदास स्वामांके सम्प्रदायवालोने भी ठुकारामजीके प्रति अत्यन्त प्रेम यक्त किया है. समर्थ और तुकाराम एक दूसरेसे अवच्य ही मिले होंगे. भिक्षाके मिससे छोटे बडे सबको परख छे मर्न्त सहन्तकों ढूँढे इत्यादि सीख दासबोध द्वारा देनेवाले समर्थ दक्षिणमें कृष्णानदीके तीरे सबत्‌ १७ ४ में आये. इसके पाँच वर्ष बाद सबत्‌ १७ ७ में तुकाराम अहृद्य हुए इन पाँच वर्षके कालमें समर्थ तुकारामजीसे कभी न मिले हों यह तो असम्भव ही प्रतात होता है रामदास तुकाराम मिछापके कथाप्रसज्ञ रामदासी ग्रन्थोंमें वणित ४. उद्धव सुतने समर्थचरित्रमें तथा रज्जनाथ आत्या स्वामी वामन निवराज बोधले बोवा और जयराम स्वामीने लिखा ९ कि प ढरपुरमें ठुकाराम रामदास मिले भीम स्वामीके सन्तलीलामूत मे तुकारामचरित्र बीस अभड़ोंमें है पर इन बीस. अभड्जोंमें भी समर्थ तुकाराम मिलनका प्रसड् वर्णित है तथा और भा कई प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध आख्यायिकाएँ हैं 'दास विश्ामधाम की भी यही बात है. तुकारामजीकी कई अनोखी बातें इस स्थमें हैं. उनकी िपत्ति उनके धैय निस्पृहता और असीम ग्रेमाभक्तिका बहुत अ क वर्णन हैं. सतोंकी छोटी बडी सभी गाथाओंमें तुकारामका गुणकीर्तन हुआ है. ठुकारामजीकी सब आख्यायिकाओं को एकत्र करके और उनकी छुछपरम्परा जानकर न्तचरित्रकार मद्दीपति बाबाने पहले ( सबत्‌ १८१९ ) भक्तविजय में पाँच अध्यायोका और पीछे ( सबत्‌ १८३१ ). मक्तढीढामुत में सोलह अध्यायोंका तुकाराम चरित्र लिखकर ठुकाराम महाराजकी बड़ी सेवा की. इन सब बातोंसे यह अच्छी तरह मादम हो जाता है कि किस प्रकार महाराष्ट्रके क्या - वारकरी और क्या अन्य सभी सम्प्रदायोंके लोगोंमें तुकारामजीकी कीर्तिपताका फहराती रही. परतु सबसे बढ़कर तुकारामजीके सम्ब धमें




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