श्रीज्ञानेश्वर चरित्र और ग्रन्थविवेचन | Shreegyaneshwar Charitra aur Granthavivechan

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Shreegyaneshwar Charitra aur Granthavivechan  by लक्ष्मण रामचन्द्र पांगारकर - Lakshman Ramchandra Paangarkar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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॥ श्रीष्टरिः | क श्वु 4, अ ¢ ह रे २ चच ला श्रीज्ञानेश्वरं- चरित्र दे भ ८ ६2 श्रीज्ञानेश्वरकारीन महारा यन्न योगेश्वर: छृष्णो यत्र पार्थों घनुघरः 1 त्र श्रीविंजयो भूति्धुवा चीतिर्मतिमम ॥ --घ्ीमद्धगवद्यैता श्रीज्ञानेश्वर महाराजका चरित्रावलोकन करनेके पूर्व इस ग्रथम अध्यायमें हमलोग एक बार तत्कालीन. महाराष्ट्रकी यरिस्थितिका अवलोकन करें । हमारे इस परमार्थ-प्रवण भारतवर्ष- .. देदामें इतिहासादि विषयोंकी ओर लोगोंका ध्यान सामान्यतः कम “ ही रहा है । इस कारण ज्ञानेथरकाठीन महाराष्ट्रका कोई सर्वाज्ञपूर्ण इतिहास अथवा उसके साधन बहुत ही कम उपछब्ध हैं । तथापि गत पचास वर्षके अन्दर जो ऐतिहासिक सामग्री सामने उपस्थित हो गयी है उसका यथामति उपयोग करके हम इस अध्यायमें ... ज्ञानेशवरकालीन महाराष्ट्रका चित्र खींचनेका प्रयत् करेंगे । किसी भी काठ्का सामान्य खरूप .सामने ले आनेके लिये उस कालके राजनीतिक, साहित्यिक तथा धार्मिक उद्योगेंका इतिहास देखना होता है और इसील्यि हम यहाँ यह देखेंगे कि ज्ञानेशर महाराजके समयमे अर्थात्‌ उनके पूर्व और पश्चात्‌ सौ-पचासर वर्षतक राजनीति, विया तथा धर्मकी इष्टिसि महाराष्ट्रकी कया अवस्था थी । महाराष्ट्रके - इतिहासमें यह -काठ बड़े महत्त्वकां है । लैन्रपाठ,




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