पत्रदीपिका | Patradipika

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Patradipika by पं. कालीचरण - Pt. Kalicharan

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं. कालीचरण - Pt. Kalicharan

Add Infomation About. Pt. Kalicharan

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दे पं्दोथिका कि वीषोंकं साथ लेकर विवाइसें दस पाँच दिन पहले आत्था क्योंकि हस्हारे बिना कई सडप्चादि कसम नछों हागा से तम १५ दिन परले आओ और २०../स० को हुरसी सेजते हैं इूससें तम आते समय १५/ तथा २०./ स० का केई शाली रूमाल भाटों के देने के लिये लेते आना और लल्द आना इस घाउ, लिखे का बहुतसा समझना ॥ मि० मागशिर शदी ३ सम्बत्‌ १९१८ [प्र*पह्])--जमाई. को चोर से स्सर को | र सिद्धि सो खसुर छठी शो भ्--कीाएएणकीं द्र्ड़वत्‌ पहुंचे यहीं कृशल है वहां कुशल चाह्यये आग आप हमारे घ्म के पिता हो इसलिये तुमसे कथनोय वा अकथनोंय कुछ छिपाना नचाहिये बात यह है कि रूम सदव परदे श में रहा चाहते डे ोार इसनो तनखाह नहों लो नोकरों से कामलें छोर घरका थी खर्च चलाये ओर आपका घब्स यह था किविवाह और दिरागमन का करना ओर सिवाय इसके आपने इतने दिन ओर सहायता को परंतु अब नारायणने चार पेंसें. के ऋोखसे लगा दिया थे इसलिये उचित यही के कि कुछ ट्विख रक साथ पज-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now