संस्कृति साहित्य और संस्थाएं | Sanskrati Sahitya Aur Sansthayen

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Sanskrati Sahitya Aur Sansthayen by माधुरी दुबे - Madhuri Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिकता अं और आज का संदर्भ द जाति की स्वाथंपरता और जाहित्य के क्षेत्र में रीतिकालीन जड़ता के विरोध से संबद्ध चेतना ( विशेष भौगोलिक स्थिति में ) उनके माध्यम से संचालित हुई थी । यही कारण है कि भारतेन्दु ने जो नूतन चेतना का बीज रोपा, अखिल भारतीय कांग्रेस ने उस नवांकुर का पालन-पोषण किया । गांधीजी और उनसे प्रेरित साहित्यकारों ने उसे राजनीति से लेकर धर्म, समाज, परिवार और व्यक्ति तक प्रसारित कर दिया । फिर दोनों तरह की प्रतिक्रियाएं हुई एक ओर यह चेतना देश, जाति, धर्म समाज और परतन्त्रता के मुक्ति जाल को काटने की प्ररणा देती रही, माक्स इत्यादि पाइचात्य विचारकों से प्र रणा ग्रहण करती रही दूसरी ओर परिचम के प्रकाश की, प्रभाव की, चमकदमक और नई धारणाओं ने अधकचरे मस्तिष्क को सकीण से संकीणंतर बनाया । इसी व्यथा से व्याकुल हो रवीन्द्रनाथ ठाकुर से कहा था-- “इस अभागे देश से, हे नाथ मंगलमय करो तुम हर सब भव जाल ओछे, >्र ५ तर यह सुचिर अपमान मानव दप का, हतगव मर्यादा जनित धिक्कार लज्जा रादि सरहृदाकार-- कर दो चूणं ठोकर मार दो अवसर कि शुभ प्रत्यूष बेला में उठाये सिर, ग्रहण कर सके निज निश्वास सुक्त वयार में लख सके यह निस्सीस परम व्योम का आलोक हप्त अशोक । ””१ रवीन्द्रनाथ ठाकुर, अनुवादकर्ता-हजारी प्रसाद द्विवेदी ।




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