आचारांग सूत्र | Aacharang Sutra

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Aacharang Sutra  by श्रीचन्द सुराना 'सरस' - Shreechand Surana 'Saras'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हू दद स्थविर कोन ? इस प्रश्न के उत्तर में दो मत हैं--आचारागचूणि एव निशीथचूणिकार का मत है--बेरा गणघरा । स्थविर का अर्थ है गणघर ' निशोयबूशिकार ने निशीध सूत्र, जो कि आचारचूला का ही एक अश है, उसे गणधघरों का 'आत्मायम' साना है, जिससे स्पष्ट है कि बह णघर कृत मानने के ही पक्षघर है ।' वुत्तिकार शीलाकाचार्य ने-स्थविर की परिभाषा-चतुर्देशपूवंघर की है ।* आवश्यक चूरणिकार तथा आचार्य हेमचन्द्र के मतानुसार आचाराग की तुतीय व चतुथे श्ूलिका यक्षा साध्वी महाविदेह क्षेत्र से लेकर आई ।* प्राचीन तथ्यों के अनुशीलन से यह बात स्पप्ट हो जाती है कि मादारचूला प्रथम श्र.त- स्कंघ का परिशिष्ट रूप विस्तार है । भले ही वह गणघरकत हो, या स्थविरकृत, कितु उसकी प्रामाणिकता असदिग्ध है ! प्रथम श्रूतस्कध के समान हो इसको प्ररमाणिकता सर्वत्र स्वीकार की गई है । विषय बहतु :. जैसा कि नाम से हो स्ब्ट है, आचाराग का संपूर्ण विषय-अचारधम से सम्बन्धित है । आचार में भी सिर्फ श्रमणाचार 1 प्रथम श्रुतस्कंध सूचरूप है। उसकी शैली अध्यात्मपरक है अतः मुलरूप में उसमें अहिसा, समता, मनासक्ति, क्रपायविजय, घुत-श्रमण-आचार आदि विषयों का छोटे छोटे बचत सूत्रों में सुन्दर बे सारपूर्ण प्रवचन हुआ है । द्वितीय श्रूतस्कंघ विवेचन/विस्तार शैली में है। इसमें भ्रमण की आहार-शुद्धि, स्थान गति-भाषा आदि के विवेक व आचारविधि की परिशुद्धि का विस्तार के साथ वर्णन है । आचार्यों का मत है कि प्रथम श्र,तस्कंघ में सूत्रलूप निदिप्ट विषयों का विस्तार ही आचारचूला मे हुआ है । आचायेंशीलांक आदि ने विस्तारपूर्वक सूत्रों का निर्देश भी किया है ।* १: आचार चूणि तथा निशोय॑ूणि भाग है. पू० २. यूर्ति पत्राक द१६,--स्थविरें: थतवृद्ध श्चतुरदं शपदंविद्मिः नियूं दानि । दे. दिस्तार के लिए देखिए प्रथम श्रुतस्कंघ की प्रस्तावना “देवेन्द्र मुति । ४. (क) नियुंक्तिकार भदबाहु ने सक्षेप में नियू'हण स्थल कै अध्ययन व उद्देशक का सकेते किया है। नियुक्ति गाया रेद८ से र६१। किन्तु चूणिकार व वृत्तिकीर ने (वृत्तिपश्ाक है१६-२०) सूत्रों का भी निर्देश किया है । जेसे (ख) सब्यामगधपरिन्ताय * अदिस्समाणों कयविक्कएहि-- (म० २ ४० इ सुअर पद) भिक्वूं परक्‍्कमेजज वा चिट्ठेजज दा, (अर ८ उ० रे सुत्र २०४) आदि सुत्रों के विस्ताररूप में पिण्डंपणा के ११ उद्देशक तथा २, ४५, ६, ७ वा. अध्ययन जद नी 2 अा के व




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