श्री कुञ्ज बिहारी स्मृति सुमन | Shri Kunj Bihari Smrati Suman
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
158
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(११) श्री कुलविद्वारी स्मृति सुमन
पं० विह्वारीजो के निकट परिकर में जहां छात्रों, श्रमिकों, भ्रध्यापकों व
साहित्यकारों की संख्या हजारों में है, वहां श्रोमन्तों की सख्या भी कम नहीं
है । भषिकांशतः धीमस्तों को प्राकर्पित करने वाला श्रमिकों का श्रद्धय नहीं
बनता, पर विहारीजो इसके शपवाद थे + वे सब के थे शोर सब उनके थे ।
उन्होंने भपनों परिधि में सबको समाहित रिया था । झपनत्व श्र परत्व क्रो
भाषा में वे किसी से लगाव व दुराव नहीं रखते ये ।
हक डे चिंतन, भाषा-प्रयोग व व्यवहार
मित्र-ममित्र की परिधि से मुक्त था
उनका कोई श्रमित्र नहीं था । वे किसी के मित्र नहीं थे ।
उनका विस्तन, भाषा-प्रयोग व व्यवहार मित्र-ग्रमिष्र की परिधि से सुक्त था ।
मित्रता किसी प्रत्यक्त मिथ को प्रतिध्वनि होती है । वे इसे सुनने के झादी
नहीं थे । यही कारण था, वे किसी सोमा से घिरे नहीं थे। जीवन-पथेन्त
उन्मुक्त रहे श्रौर झ्रपन हर सांस को उन्होंने समपंण के साथ श्रनुस्पुत किया 1
विहारोजी के शिप्यों को सख्या से कडों-हजारों में है । उनके मिद्नों की
सख्या भो उससे म्धिक ही है । मैंने श्रपने चुरू चतुर्मा्त (वि सं. २०२३) में
थे अपने पास देठे हुये व्यक्ति
को भी सचिन्त नहीं रहने देते
थे । दो-चार क्षणों में हो वे
बातावरण को स्मित हास्य में
परिवत्तित कर देते थे।
पद कि. ्ं दे सं
संयोजन की जागरूकता
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