स्वर्ण जयंती ग्रन्थ | Swarna Jayanti Granth Khand

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Swarna Jayanti Granth Khand by कुंजबिहारी लाल - Kunjbihari Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्थापना भरतपुर व्रजभाषा का प्रमुख गढ़ है। यह स्थापन-कालसे दी ब्रजभाषा के उच्चकोटि के कवियों का निवास-स्थान रहा है। महाकवि सोमनाथ ग्रौर सूदन आदि ने अपनी काव्य प्रतिभा से इस क्षेत्र की ख्याति को भारत के कोने कोने तक पहुँचा दिया था । अनेक महाकवियों के आश्रयदाता भरतपुर के नरेणों ने व्रजभाषा के प्रचार और प्रसार में सदेव से योग दिया, पर काल की गति का राज- नीतिक और सामाजिक प्रभाव भाषा पर भी पड़े बिना न रहा । मुगलों और अंग्रेजों से टक्कर लेने वाले फारसी, उदू और अंग्रेजी से अप्रभावित न रह सके । शासन पर इन दोनों भाषाओं का क्रमशः दबदबा रहने की वजह से नौकरी की भूखी जनता अपनी मातृभाषा के महत्व को भूल सी गई । ऐसा समय भी সানা অন ब्रजभाषा (हिन्दी ) का प्रभाव केवल घरो की चारदीवारी तक ही सीमित रह्‌ गया, किन्तु इस स्थिति को जन-मानस ने स्वीकार नही किया । समय ने करवट वदली । हिन्दी के हितेषी मावृभाषा की हीनावस्था से तिलमिला उठे। २०वीं शताब्दी के आरम्भ काल में उत्तर भारत के नगर नगर मे हिन्दी के प्रति स्नेह और आदर उत्पन्न करने के लिये सभा और समितियों की स्थापना होने लगी। राष्ट्रभाषा प्रेम की इस लहर से भरतपुर के नागरिकों का मानस भी प्रभावित हुआ । माह्भाषा के कुछ उत्साही नागरिकों ने समाचार-पत्र और पुस्तक पठन-पाठन के कार्यक्रम को जारी करने की चेष्टाएँ आरम्भ की । पंडित रामचन्द्र ग्रौर मुंशी जानकीबल्लभ ने एक स्थान पर समाचारपत्रं श्रौर पुस्तको के पठने की व्यवस्था की । कटा जाता है कि वह प्रयास अपनी तरह का अनूठा था । नये जोश मे कार्य चलने भी लगा परन्तु कुछ कारणों से वह अकाल मृत्यु को प्राप्त हो अपने अस्तित्व को ही खो बैठा । पर जागा जन-मानस आसानी क्षे




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