अव्दैत वेदान्त | Advita Vedanta

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अग हैं। ऋग्वेद के तृतीय मण्डल में भी अद्वैतवाद की प्रवृत्ति स्पष्टतया दृष्टिगोचर होती है जिसमें यह कहा गया है कि एक ही जो विश्व है अर्थात्‌ सब कुछ है इस चराचर तथा उड़ने वाले समस्त जगत का स्वामी है- पत्यते विश्वमेकों चरत्पतत्रिविषुण वबिजनातमू इस मंत्र में दो पद एकम और विश्वम इस तथ्य को प्रकठ करते हैं कि वह मूल तत्व एक है तथा सब कुछ वही है। इसके अतिरिक्त तृतीय मण्डल में ही एक पूरा 22 मंत्रों का सूक्त है जिसरम ें प्रत्येक मंत्र के चतुर्थ चरण में यह ध्रुवपद आया है कि. जिसका अर्थ है देवताओ के अन्दर विद्यमान बल या सामर्थ्य एक ही है। इस प्रकार यह पूरा सूक्त ही देवताओं के एकत्व को प्रतिपादित करता है। ऋग्वेद में नासदीय सूकत का अपना विशेष महत्व है। यह सूक्त दार्शनिक गम्भीरता का उत्कृष्ठ उदाहरण है। इसमें नवीन परिकल्पना के साथ दृष्टि परिलक्षित होती है। यह सूक्त गूढ़ सहस्यमयी आध्यात्मिक चिन्तन धारा का परिचायक है। इस सूक्त में सृष्टि की उत्पत्ति के सम्बन्ध में अत्यन्त सूक्ष्मता से विचार किया गया है। इसलिए यह सूक्त सूक्त के नाम से भी जाना जाता है। नासदीय सूकत में कुल सात मंत्र है। सूक्त में ऋषि कहते हैं कि- नासदासीन्नो-सदासीत तदानीं ... .... दवा न वेद/ इस प्रकार नासदीय सूक्त के तीन भाग हैं तथा ये तीन स्थितियों में प्रबलतम रूप में अद्वैत तत्व का बोध कराते हैं। प्रथम भाग में इस सृष्टि के पहले की स्थिति का वर्णन है। उस अवस्था में सत-असतु मृत्यु-अमरता अथवा रात्रि-दिवस कुछ भी नहीं सहाभारयादृकेवताया एक एवात्या बहुधा स्तूयते/ एकस्थत्मनोजन्ये देवा प्रत्यड़गानि भवन्ति// निरूक़त 7-4 ऋग्वेद 3 /54 //8 ऋग्वेद 3८55 ऋग्वेद 10//129 //1-7




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