कांचघर | Kanchghar

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Kanchghar by रामकुमार भ्रमर - Ramkumar Bhramar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कॉंचपर १४ जागेगा भौर प्रूछेगा कि क्यों रोती है ? रतना रो भी नहीं सकती ! उसने एक भाह भरी भौर फिर से करदट लिए पड़ें मुकुम्दराव को देखा । जाग रहा है नहीं जाग रहा है ! चया सोचेगा दालाजीराव ?*” सपकेगा कि रहना ने उससे छत उया। उसे कया भालूभ कि ररना कितनी बेब हो गई है। वह पड़ी की पर देखने लगी --बारह बज चुके हैं । दस मिनट ऊपर 1 पद ? *** जरा हिम्मत करे प्रौर उल पढें । भरी वालाजीराव इस्तः तर ही कर रहा होगा । हों, चल ही पड़े रला'** नहीं दल सकेगी | कंसे चल सकती है ? फिर कभी विरवास नदी करेगए बालाजीराव ? बिलकुल मुकुर्दराय न जाएगा। कहेगा--'तमाशेवाली घौरत का कया दिएवास ! वहस्साली ।बायत का दरतर होती है। मोची से लेकर पंडित तक उसमें जा सकत [ ! ***वहू सबकी, प्ौर किसीकी नही 1 ***बालाजीराद भी ऐसे ही कहने लगेगा । हेलियां मसलता हुए पर रे में धूम रहा होगा। उरा-सी घाहट होते ही चौंक जाता होगा-- गह सोचता हुभा कि शायद रतना था रही है।'** घोर रला यही है। कुत्ते की पहरेदारी में । सदा बारह हो चुके । * “थोड़ी देर बाद साढ़े बारह हो जाएंगे, फिः एक, दो, तीन*'भौर धाखिर में सवेरा ! ग्रलसू सुबह, बह वक्त जम बालाजी राव पुडिया लेकर भाया करता है । पर घाज नहीं घाएगा वह । रा ने फिर से सांस सी भोर मुडुन्दराद की घोर देखा । बह उस तरह करवट लिए पहां था भोर उसको नीद के प्रमाण सरटि गायय थे रहना ने सोना चाहा, पर बयां सो सकेगी बहू ? रा ने चाहा हि उठकर पानी पिए **पर यह भी काफी कठिन लगा उसे । एक थार इस तरह घाषों रात को पानी पोने के लिए उठो थी भर भट से जाय गए दो मुगुग्दराव --*बया बात है ?” “कुछनहीं । पानी ** प्कूं। आर फिर ठोक हरह पानी मो नहीं पी सकी थी वह । दो-चार पं




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