कांचघर | Kanchghar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
219
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कॉंचपर १४
जागेगा भौर प्रूछेगा कि क्यों रोती है ?
रतना रो भी नहीं सकती ! उसने एक भाह भरी भौर फिर से करदट
लिए पड़ें मुकुम्दराव को देखा । जाग रहा है नहीं जाग रहा है !
चया सोचेगा दालाजीराव ?*” सपकेगा कि रहना ने उससे छत
उया। उसे कया भालूभ कि ररना कितनी बेब हो गई है। वह पड़ी की
पर देखने लगी --बारह बज चुके हैं । दस मिनट ऊपर 1
पद ? *** जरा हिम्मत करे प्रौर उल पढें । भरी वालाजीराव इस्तः
तर ही कर रहा होगा । हों, चल ही पड़े रला'**
नहीं दल सकेगी | कंसे चल सकती है ?
फिर कभी विरवास नदी करेगए बालाजीराव ? बिलकुल मुकुर्दराय
न जाएगा। कहेगा--'तमाशेवाली घौरत का कया दिएवास ! वहस्साली
।बायत का दरतर होती है। मोची से लेकर पंडित तक उसमें जा सकत
[ ! ***वहू सबकी, प्ौर किसीकी नही 1
***बालाजीराद भी ऐसे ही कहने लगेगा । हेलियां मसलता हुए
पर रे में धूम रहा होगा। उरा-सी घाहट होते ही चौंक जाता होगा--
गह सोचता हुभा कि शायद रतना था रही है।'**
घोर रला यही है। कुत्ते की पहरेदारी में ।
सदा बारह हो चुके । * “थोड़ी देर बाद साढ़े बारह हो जाएंगे, फिः
एक, दो, तीन*'भौर धाखिर में सवेरा ! ग्रलसू सुबह, बह वक्त जम
बालाजी राव पुडिया लेकर भाया करता है । पर घाज नहीं घाएगा वह ।
रा ने फिर से सांस सी भोर मुडुन्दराद की घोर देखा । बह उस
तरह करवट लिए पहां था भोर उसको नीद के प्रमाण सरटि गायय थे
रहना ने सोना चाहा, पर बयां सो सकेगी बहू ? रा ने चाहा हि
उठकर पानी पिए **पर यह भी काफी कठिन लगा उसे । एक थार इस
तरह घाषों रात को पानी पोने के लिए उठो थी भर भट से जाय गए
दो मुगुग्दराव --*बया बात है ?”
“कुछनहीं । पानी **
प्कूं।
आर फिर ठोक हरह पानी मो नहीं पी सकी थी वह । दो-चार पं
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