वेळी क्रिसन रुकमानो री रतोद्राज प्रिथीराज री कही | Veli Krisan Rukmano Ri Ratodraj Prithiraj Ri Kahi

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Veli Krisan Rukmano Ri Ratodraj Prithiraj Ri Kahi by स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भरामका ११ (३) शाखो--देवनागरी लिपि का राजस्थानी रूप हैं । साहित्य में यह प्रयाग की जाती है । श्राज-कल देवनागरी भ्रत्तर भी खूब प्रचलित हो गये हैं श्ौर ज़्यादातर उन्दीं का उपयोग किया जाता हैं । राजस्थानी हिन्दी एवं गुजराती कं मध्य की भाषा है पर वह “हिन्दी की अपेक्ता शुजराती से. विशेष सादश्य रखती है । वाक्य- बिन्यास, रचना, संगठन, शब्दावलो श्रादि में गुजराती से बहु अधिक मिलती दै। 'बेलि” में यह मेल बहुतायत से प्रकट होता है | फिर भी राजस्थान में शुजराती को श्रपेक्षा हिन्दी अधिक समभी जाती हैं । कारण यह है कि राजस्थान का दिल्ली से प्राचीन काल से सम्बन्ध रहा हैं झार इसके श्रलावा कुछ बर्ष पहले तफ यहाँ की अधिकांश रियासतों की राजभाषा फ़ारसी थी । इस समय भी राजस्थान को रियासतों में राजभाषा उर्दू या हिन्दी ही है । राजस्थानी का साहित्य बहुत प्राचीन है श्रौीर साथ ही साथ विस्तृत भी है। श्रारम्भ में राजस्थानी का राजपूत राजाओं से घनिप् सम्बन्ध रहा श्रोर वद्च उनके यहाँ पली तथा फली-फूली । जब भारत को श्रन्य देश-भाषायें अभी गर्भ में ही थीं, राजस्थानी मे एक फलता-फूलता साहित्य विद्यमान था । केवल वीर-काव्य हो नहीं छोटे छाटे गोत यानी १1168 भी वर्तमान थे । गीत- साहित्य (01100 ॥ (०7076) राजस्थानी का श्रपभ्रंश से बपौती कं रूप में मिला था। ये गोत बड़ लोक-प्रिय होते हैं ध्रार साधारण जनता के हृदयों का शाकपषण करने को बड़ों शत्ति रखते हैं । राजस्थानों कविता हमेशा जनप्रचलित रही है। बह पढ़े जानें के लिए नहीं, गाये,जाने क॑ लिए लिखी जाती थी | अनेकों कबितायें राजस्थानी का साहित्य




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