वेळी क्रिसन रुकमानो री रतोद्राज प्रिथीराज री कही | Veli Krisan Rukmano Ri Ratodraj Prithiraj Ri Kahi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
973
श्रेणी :
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No Information available about स्व. महाराज श्री जगमाल सिंह जी साहब - Sw. Maharaj Shree Jagmal ji Sahab
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)भरामका ११
(३) शाखो--देवनागरी लिपि का राजस्थानी रूप हैं । साहित्य
में यह प्रयाग की जाती है । श्राज-कल देवनागरी भ्रत्तर
भी खूब प्रचलित हो गये हैं श्ौर ज़्यादातर उन्दीं
का उपयोग किया जाता हैं ।
राजस्थानी हिन्दी एवं गुजराती कं मध्य की भाषा है पर वह
“हिन्दी की अपेक्ता शुजराती से. विशेष सादश्य रखती है । वाक्य-
बिन्यास, रचना, संगठन, शब्दावलो श्रादि में गुजराती से बहु
अधिक मिलती दै। 'बेलि” में यह मेल बहुतायत से प्रकट होता है |
फिर भी राजस्थान में शुजराती को श्रपेक्षा हिन्दी अधिक समभी
जाती हैं । कारण यह है कि राजस्थान का दिल्ली से प्राचीन काल
से सम्बन्ध रहा हैं झार इसके श्रलावा कुछ बर्ष पहले तफ यहाँ की
अधिकांश रियासतों की राजभाषा फ़ारसी थी । इस समय भी
राजस्थान को रियासतों में राजभाषा उर्दू या हिन्दी ही है ।
राजस्थानी का साहित्य बहुत प्राचीन है श्रौीर साथ ही साथ
विस्तृत भी है। श्रारम्भ में राजस्थानी का
राजपूत राजाओं से घनिप् सम्बन्ध रहा श्रोर
वद्च उनके यहाँ पली तथा फली-फूली । जब
भारत को श्रन्य देश-भाषायें अभी गर्भ में ही थीं, राजस्थानी मे
एक फलता-फूलता साहित्य विद्यमान था । केवल वीर-काव्य हो
नहीं छोटे छाटे गोत यानी १1168 भी वर्तमान थे । गीत-
साहित्य (01100 ॥ (०7076) राजस्थानी का श्रपभ्रंश से बपौती
कं रूप में मिला था। ये गोत बड़ लोक-प्रिय होते हैं ध्रार
साधारण जनता के हृदयों का शाकपषण करने को बड़ों शत्ति
रखते हैं ।
राजस्थानों कविता हमेशा जनप्रचलित रही है। बह पढ़े जानें
के लिए नहीं, गाये,जाने क॑ लिए लिखी जाती थी | अनेकों कबितायें
राजस्थानी का
साहित्य
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