प्रभास मिलन | पभास मिलन

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
पभास मिलन  by पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र - Pandit Durgaprasad Mishr

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पण्डित दुर्गाप्रसाद मिश्र - Pandit Durgaprasad Mishr

Add Infomation AboutPandit Durgaprasad Mishr

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[ का 7 दया “दया रंग नहीं वियें थे। ' पर + : बइतः दिंने” को वात हैं ' घाव कुछ ठंडी-पड़ गई है ।' -पर व व उसे भ्रूलो है। “उसी की थार्स' याद कर कर दिन रात रोया करती. है।. और एक बेर उस बूढ़े डोकरे ने आकार क्या रंग कियो: था ।' 'उसे.सनरे ब्र॑ज में देइ कर भी कोई सती :यतित्रता न सिखी गणित . करके देंग्दा तब यष्टी प्रश्न थावा कि एक राधा डी सतो है। सुकें तो थे झतिथि भो ऐसा दी धूत दीखे है । इस का :खिलर -खिलर : छंसना टुमुर टुसुर देखना चमें तो साई चर ऋा नहीं लगे है.। एके «बेर 'किवाड़ नी सेंद में से देखना चाहिये। घरके , किवाड़ लया:कर “एक सृन्दरी जो को सीकर व्या-पूजा ' होती है। जो कुंछ॑ ऐसा ' बैसा करे तो “ऐन” दादा को बुलाकर -बुद्ढे -डोकरा की ऐसी चउ्डी कुटवाऊ' कि बस ! एक बेर देखतो क्या करता है । . (किवाड़क्सो सन्धि से से देखती है ) ऐ सा ! यद्द क्या है - यह तो एक नई बात ' देखी । चाय ! ये बच् भी छुछ कम नह्दीं हैं। बावारे बाबा ! इस को छाती कैसी पक्की है। बेधड़क अपने एक पाव बढ़ाकर भरस्सी वर्ष के बूढ़े ऋषि से पूजा करा री है। .गजव किया वक्क ने इसे यंन् भी डर नदीं है कि ब्राह्मण से पाव पुज्ञाक्षर कक्चौ कोढ़कुष्ट न दो जाय कौन ज़ाने भाई थे बच कुछ मोडिनो जानती है ।' जो एक बेर' इसे देखता: है वद्ी सोच जाता है ।- चमारे दादा छो को देखो न ? मैंने कई बेर क़ासे को चांतो छांत' पदाड़ाय दिया था । पर.दादा के लेखे तो भी राघासती है । :वच्चौ जादू टोना वार कर सबं ही “को सुलाय देती है पर हाटिला भ्रूलमे वाली नब्ीं है। फिर देख कर' दाय | हाय !'वे डंसौ बेंया हैं ऐसी हो जगेंने डै।' दूंढ ब्राहमन के खाये पहले ' चौ- आप' खाने लंगी।' हाय! साते खाते पत्तल में भयूठन भी-्छोड़ दौ । (फिर देखकर गजंदरे गज्जव बुईे की यह कैसी वुच्च सर्ठियायं गई. है। सद्दाप्रसाद के तरह वहन की जूठन खाने लगा । यह क्या इच्चा ब्रह्माजौ के पुच




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now