पुष्पमाला मोक्षमाला भावनाबोध और फुटकर कवितायें | Pushpamala Mokshamala Bhavanabodh Aur Phutakar Kavitayen

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Pushpamala Mokshamala Bhavanabodh Aur Phutakar Kavitayen  by जगदीश चन्द्र - Jagdish Chandra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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*काल किसीको नद्दीं छोड़ता ७ नक्‍्सीवाली पोंची घारण करते थे; वे भी मुद्रा आदि सब कुछ छोड़कर मुँह धोकर चल दिये, हे मनुष्य जानो और मनमे समझो कि काल किसीको- नहीं छोड़ता ॥ ३ ॥ जो मैँछे बांकीकर अढबेठा बनकर मैंछोंपर नींबू रखते थे, जिनके कटे हुए सुन्दर केश हर किर्साकि मनको हरते थे; वे भी संकटमे पड़कर सबको छोड़कर चढ़े गये, हे. मनुष्यो, जानो और मनमे समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता ॥ ४ ॥ जो अपने प्रतापसे छह्ो खंडका अधिराज बना हुआ था, और ब्रह्माण्डमे बलवान होकर बड़ा भारी राजा कहलाता था, ऐसा चतुर चक्रवर्ती भी यहेंसे इस तरह गया कि मानो उसका कोई अस्तित्व ही नहीं था, हे मनुष्यों, जानो और मनमे समझो कि काल किसीको नही छोड़ता ॥ ५ || जो राजनीतिनिपुणतामे न्यायवाछे थे, जिनके उछटे डाछे हुए पासे भी सदा सीधे ही पड़ते थे, ऐसे भाग्यशाली पुरुष भी सब खटपटे छोड़कर भाग गये । हे मनुष्यों, जानो और मनमें समझो कि काठ किसीको नहीं छोड़ता ॥ ६ ॥ जो तलवार चलानेमे बहादुर थे; अपनी टेकपर मरनेवाठे थे, सब प्रकारसे परिपूर्ण थे, जो हाथसे हाथीको मारकर केसरीके समान दिखाई देते थे, ऐसे सुमटवीर भी अंतमे रोते ही रह गये। हे मनुष्यो; जानो और मनमे समझो कि काल किसीको नहीं छोड़ता || ७ ॥ ए; बेढ वींटी सब छोडी चालिया मुख धोईने, जन जाणीए; मन मानीए नव काठ मूके कोईने ॥ ३ ॥ मुछ वाकडी करी फाकडा थई लींबु घरता ते परे; कपपेल राखी कातरा हरकोईना दैया हरे ए. साकडीमा आविया छटक्या तजी सट्ढ सोईने - जन जाणीए, मन मानीए नव काठ मूके कोईने ॥ ४ ॥| छो खडना अधिराज जे चडे करीने नीपज्या, ब्रह्माडमा बठवान थइने भ्रूप भारे ऊपज्या, ए. चतुर क्री चालिया होता नहोता होईने, जन जार्णाए, मन मानीए, नव काठ मूके कोईने ॥ ५ ॥| जे राजनीतिनिपुणतामा न्यायवता नीवच्या, अवछ्ठा कर्ये जना बधा संवठा सदा पासा पथ्या ए. भाग्यशाठी भागिंया ते खटपटों सो खोईने जन जाणीए, मन सानीए नव काठ मूके कोईने ॥ ६ ॥ तरवार ब्हादुर टेक धघारी पू्णतामा पेखिया, हाथी हणे हाथे करी ए. केसरी सम देखिया, एवा भला भडवीर ते अते रहेला रोईने जन जाणीए, मन मानीए, नव काठ्ठ मूके कोईने ॥ ७ ॥)




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