रेवातीदान समालोचना | Revteedan Smalochana

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Revteedan Smalochana by धीरजलाल के० तुरखिया - Dheerajlal K. Turkhiya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ही दें हूँ क रेकती-दान-समालोचना, ( हिन्दी भाषान्तर ) वि , सगलाचरण फिस निषेध को प्रारंम करन की इच्छा की है उसकी समाधि के लिए इु्ट देव को नमस्कार रूप मंगलानचरणु करतें हैं-- ' संसार-समुद्र के पार पहुँचे हुए महावीर को नमस्कार करके रेवती द्वारा दिए हुए दान के विषय में वास्तविकता का विचार किया जाता है. ॥ १॥| . उप पद विभक्ति से कारक विभक्ति अधिक वछवती होती है, अतः नयहाँ 'मददावीरम' पद में -द्वितीया कारक विभक्ति का प्रयोग किया गया है । इ्ट देव तो महावीर के , अतिरिक्त गौर मो हैं किन्तु महावीर ही चर्चमान शासन के स्वामी हैं और प्रकृत निवंध का संदंघ उन्हीं, से है, दसडिए मंगलाचरण में उन्हीं का अहण किया गया है । . थुद्ध के तिजेता को वीर कइते हैं किन्तु कर्म-युद्ध में विजय पाने वाले को महावीर कहते अर्थात्‌ वीरों में भी जो महान वीर हो सो महा- चीर'। मद्दावीर पद से यहाँ अतुरु पराक्रम दिखाने चाऊे चघमान स्वामी का भथे लिया गया है । घर्धमान ने कहीं अतुल पराक्रम दिखलाया है ? इसका समाधान करने के लिए कइते हैं--भव अर्थात्‌ संसार, यदी संसार भगाप होने के कारण मानों समुद्र है; उसके पार अथांद्‌ अन्त तक. जो ना.पहुँचे चह भवपायोदघिपारग' कहलाता है। सतलव यह है कि व्घमोन स्वामी जे मॉंक्ष॑ आाप्त करने में अतुछ पराक्रम दिखलाया है।..... ' *.




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