अर्चना | Archana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अचमा ् भज भिखारी विश्वभरणा सदा अशरण-शरण-शरणा | मागें है पर नहीं आश्रय चलन है पर निर्देलन-झय सहित-जीवन मरण निश्चय कह सतत जय-विजय-रणना । पतित को सित हाथ गहकर जो चलाती हैं. सुपथ पर उन्हीं का तू सनन कर कर पकड़ निश्शर-विश्वतरणुाः । पार पारावार कर तू मर विभव से अमर बर तू रे असुन्दर सुघर घर तू एक. तेरी. तपोवरणा। कु १ रे १-५०




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