आप्तमीमासा तत्वदीपिका | Aptamimansa Tattvadipika

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Aptamimansa Tattvadipika by उदयचन्द्र जैन - Udaychnadra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ *३ होना आवश्यक है। इसके विना जन आप्तता सम्भव नहीं है। वेद- प्रामाण्यवादी ऐसे पुरुषकी सत्ता स्वीकार नहीं करते और घर्ममे केवल वेदके ही प्रामाण्यको स्वीकार करते है। कुमारिलने अपने पूर्गज जेना- चार्य समन्तभद्रके द्वारा प्रस्थापित्त पुरुपकी सर्वज्ञताका विस्तारसे खण्डन किया है, और कुमारिलका खण्डन समन्तभद्रके व्याख्याकार अकलक और -विद्यानन्दने विस्तारसे किया है । माचायें समन्तभद्रने “'आप्तमीमासा' के नामसे ११४ कारिकाओमे एक प्रकरण ग्रन्थ रचा है, जिसमे भाप्तकी मीमासा करते हुए एकान्तवादी दर्शनोकी समीक्षा की है । साथ ही अनेकान्तवादकी प्रतिष्ठा की है । इसीसे उन्हे स्पाद्वादका प्रतिष्ठाता तक कहा जाता है। उनके इस ग्रन्थ पर गाचार्य भकलकने, जिन्हे जैन प्रमाणव्यवस्थाका प्रतिष्ठाता कहा जाता है, अष्टयात्ती नामक भाष्य रचा है और उस भाष्यको आत्मसाव्‌ करते हुए आचायं विद्यानन्दने अष्टसहस्रीके रूपमे एक अमूल्य निधि प्रदान की है । थे तीनो ही आचायं प्रखर ताकिक थे । आचार्य विद्यानन्दका मन्तव्य है कि आप्तके स्वरूपको दद्निवाले ऊपर उद्धृत मगल रलोकको ही हष्टिमि रखकर समन्तभद्रने भाप्तमीमासा की रचना की है। उक्त दलोक “तत्त्वाथंसुत्र' की सभी हस्तलिखित प्रतियोके प्रारम्भमे पाया जाता है भौर तत्त्वाथंसुत्रकी भाद्य वृत्ति सर्वाथि- सिद्धिके प्रारम्भमें भी पाया जाता है । अत जब एक पक्ष उसे सुन्रकार- की कृति मानता है, तव एक पक्ष ऐसा भी है जो उसे वृत्तिकारकी कृति मानता है, और इस तरह वह पक्ष भाचायं समन्तभद्रकों पुज्यपाद देव- न्दिके, जो सर्वाथ॑सिद्धिकि स्वयिता हैं, परचात्‌का मानता है। किन्तु गाचायें विद्यानन्दके उल्लेखोसे यहीं स्पष्ट होता है कि वे उक्त मगल दलोकको सुत्रकारकी ही कृति मानते है । .... आाचायं विद्यानन्दने अष्टसहस्रीके प्रारम्भमे श्री वर्धमान स्वामीको नमस्कार करते हुए अपनी कृतिको “लास्त्रावताररचितस्तुत्तिगोच राप्त- मीमांसित' कहा है । इस पदकी व्याख्या करते हुए उन्होने 'शास्त्रावत्तार- रचिंतस्तुति' का अर्थ “मज़लपुरस्सरस्तव' किया है। उसकी व्याख्या , करते हुए कहा है--मगल है पुर्वंमे जिसके उसे मगलपुरस्सर कहते हैं। मर्थात्‌ ्ास्त्रके अवतारकालमे रची गई स्तुति “मज़लपुरस्सरस्तव' है, ऐसी उसकी व्याख्या है। अत्त मंगलपुरस्सरस्तवका विषयभूत जो परम आप्त है उसके गुणातिशयकी परीक्षाको तद्धियक आप्तमीमासित जानना ' चाहिए ।




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