न्यायकुमुदचन्द्र परिशीलन | Nyaykumudchandra Parishilan

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Nyaykumudchandra Parishilan by उदयचन्द्र जैन - Udaychnadra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन परम हर्ष की बात है कि परमपूज्य 108 उपाध्यायश्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा ओर आशीर्वाद से मने सन्‌ 1997 मे आचार्य प्रभाचन्द्र द्रारा विरचित जैनन्याय एवं जैनदर्शन के प्रसिद्ध ग्रन्थ प्रमेयकमलमार्तण्ड के आधार पर प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन लिखा था। इस ग्रन्थ की वाचना श्रीजम्बूस्वामी दिगम्बर जैन सिद्ध क्षेत्र चौरासी-मथुरा मेँ पूज्य उपाध्यायश्री के सान्निध्य मेँ अनेक विद्वानों के साथ बैठकर अक्टूबर 1997 के अन्तिम सप्ताह में हुई थी। तदनन्तर ग्रन्थ प्रेस में छपने के लिए दे दिया गया था। ग्रन्थ क्रा प्रकाशन हो जाने पर श्रुतपञ्चमी के अवसर पर मेरठ मे अखिल भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शास्त्ि-परिषद्‌ के अधिवेशन के समय शताधिक विद्वानों की उपस्थिति में दिनांक 1 जून 1998 को उसका विमोचन हुआ था। इस अवसर पर एक विशेष बात यह हुई कि विमोचन के पूर्व उपाध्यायश्री ने मुञ्ञे अपने पास बुलाकर कहा कि न्यायकुमुदचन्द्र पर परिशीलन लिखने का वचन दो तब इस ग्रन्थ का विमोचन होगा। उपाध्यायश्री की हार्दिक आकांक्षा को जानकर मैने महाराजश्री के चरणों मे सविनय निवेदन किया कि मेँ यथाशक्ति ओर यथासम्भव आपकी आज्ञा का पालन करने का पूर्ण प्रयत्न करूँगा। तदनुसार मने न्यायकुमुदचन्द्र पर परिशीलन लिखने का निश्चय करके कार्य प्रारम्भ कर दिया, परन्तु अस्वस्थता आदि कुछ कारणों से इस कार्य को करने मे समय अधिक लग गया। फिर भी सन्तोष की बात है कि आष्टाहिकपर्व की पूर्णिमा दिनांक 20 मार्च 2000 को मेरा लेखन कार्य सानन्द सम्पन्न हो गया। मैं अपने इस लेखन कार्य में कहाँ तक सफल हुआ हूँ इसका मूल्याहन तो विन्न पाठक ही कर सकते है। इस बीच पूज्य उपाध्यायश्री प्रणा ओर आशीर्वाद देते रहे तथा जिज्ञासा करते रहे कि लेखन कार्य कब तक समाप्त होगा। ओर जब उन्हे यह जानकारी मिली कि उक्त ग्रन्थ का लेखन कार्य पूर्णं हो गया है तो उन्होने इसकी वाचना के लिए उत्सुकता प्रकट की। मैंने भी सोचा कि पूज्य उपाध्यायश्री के सान्निध्य




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