सम्यक्त्व विमर्श | Samyaktva Vimarsh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
328
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)संस्कृति रक्षक संघ साहित्य रत्तमाला का २० वाँ रत्न
सम्यक्त्व विमर्श
पथ द
कष्ट
।
परसत्यसथवों वा, सुदिहुपरसत्थसेवणा वादि ।
वावण्णकुदं सण-वज्जणा, य सम्मत्त-सद्दृहणा ॥1
-परमाथे का १ संस्तव-परिचय एवं कीतेन करना,
२ सुदृष्ट-परमार्थ के ज्ञाता की सेवा करना, ३ सम्यक्त्व से
पतित की संगति का त्याग करना और '४ कुदशंन-मिथ्यादशेनी
की सगति का त्याग करना । (उत्तराध्ययन २८)
जीव, बेभान श्रवस्था में श्रनस्त काल रहा । भ्रनादि
काल से जीव मिथ्यात्व की श्रवस्था में रहता श्राया । जीव का
श्रघिकांश काल झ्रसंज्ञी अवस्था में ही गुजरा, जिसमे किसी
विषय पर विमर्श करने की शक्ति ही नहीं थी । मन के श्रभाव
मे वह किसी विषय पर विमर्श कर ही नही सकता था । सम्यक््त्व
ही कया, वह मिथ्यात्व के विषय मे भी नही सोच सकता था |
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