हिरोल | Hirol

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Hirol by शिव प्रसाद - Shiv Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( है७ ) दगो--बच्चा होनेवालाहै। जाओ, अररकालकेलिए बाहर 'चलेजाओं । दर) (बल्लादिका बाहर प्रस्थान। अचल अपने दुपट को मंदिर के द्वारपर परदेके समान लपेटकर बाहर जाताहै 1) अचल--ाज इस महान विपत्तिमें जिस शिशुका जन्म हो रहाहै. उसीपर हमारी भविष्यकी आशाएं तिभरहे । दुगो--( अन्दरस ) बालक हागया | बल्ल--घ्राता !' इस बालकका नाम ' आशा * रखो । मगवान करे एक दिन यह बालक बप्पा रावल आर संपघ्रामसिंद-सा पराक्रमी हाकर हमारी आशा्योंका सफल करे । चला, अन्दर चले | (सबका अन्दर प्रवेश ) दृश्य - ४ स्थान-रेवीक्षेत्र, रणग्रांगण बीरराय--आज वीरगण / रणपब्रांगणुमें मांकी लाज बचानीहै। देश-घमके शत्रजनोंके शवकी सेज सजानीहै ॥ . :; आज जगतको हिन्दजातिका विक्रम-शौोय दिखाना है । _..... अत्याचारी.दानवगणकों समुचित पाठ पढ़ानाहै ॥. कणुराय--बढ़ो वीरगण / बढ़ो वीरयण / सूनीसा अरेदल कादो | रुरडसुरड्से श्र जनोंके गिरि-कन्दर-घाटी पाटो ॥ माठ्मूमिके रजकण-कणशको यवन-रुधिरसे घोडालो । बढ़ो वीरगण / असरयश रचो सृत्यु-मीतिको खोडालो ॥। कबिंराय--लक्ष-लक्ष हिन्दूजन अपने देश हित मरे कटकटकर | .... लक्ष-लक्ष हिन्दू अवलाएं सिटी अरिनमें जलजलकर ॥। उनके यह बलिदान न हूंवें व्यथ. तुम्हारे तन रहते शन्रजनांकी आश न फूलें वीरो / तन-जीवन रहते ॥।




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