श्री जवाहर किरणावली [नवां भाग] | Shri Jawahar Kirnawali [Part - 9]

Shri Jawahar Kirnawali [Part - 9] by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कथा का प्रारम्भ मगलाचरण प्रसन्नता या न गताऽभिषेकत तथा न मम्लौ वनवासदु खत्त 1 मुखाम्बुजश्री रघुनन्दनस्य मे सदाऽस्तु तन्मज्‌जुल मड़गलप्रदम्‌ } 1 यह तुलसीदास का किया हुआ मगलाचरण है। वे कहते है कि रामायण तो फिर समझाएगे पहले यह समझ लो कि उस मथन मे से क्‍या निकला? उस मथन से समभाव निकला। अर्थात्‌ प्रत्येक दशा मे मनुष्य को समभाव रखना चाहिए - यह शिक्षामृत उस मथन से निकला हे। लोग कहते है - यो तो समता रखते है परन्तु ससार के काम मे जब गडबड हो जाती है तो समता नही रहती! मगर उन्हे सोचना चाहिए कि समता की आवश्यकता तो तभी है जब ससार के काम मे गडबड हो जाए। गडबड न होने की हालत मे तो समता की आवश्यकता ही नही है। समता का उपदेश तो विकट प्रसग के लिए ही है। शस्त्र वही काम का कहलाता है जो वक्त पर काम आये। जो शस्त्र आवश्यकता के समय बेकार साबित होता ह वह शस्त्र शस्त्र ही क्या? इसी प्रकार विषमता का कारण उपस्थित होने पर श्री विषमता न पेदा होना समता रहना ही सच्ची समता है | कहावत है- सब ही बाजे लश्करी सब ही लश्कर जाय। सेल घमाका जो सहे सौ जागीरी खाय || हथियार वाधकर स्त्रियो मे घूमना ओर बात हे ओर रणभूमि मे जाकर जूसना ओर वाते हे । अव आप सोच ले कि आपको कैसा वीर बनना है? रामायण के दोहन से जो अमृत निकलेगा उसे कवि पहले ही सब “ सामन रख देते हे। वे कहते हं कि हमे उस अमृत की पूजा करनी है | द न न সি ^ সিসি সি সি সপ পিসি পাজি জি সা, আমিশা স্তর সস ^~ ~~~ ~~ ~ ~~~ + ~~ ~ ~~ ~~~ ~ तरु ऋ राम-वनगमन ६




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