वर्तमान परिवेश में पुरानों के शैक्षिक निहितार्थ एक समालोचनात्मक अध्ययन | Vartman Parivesh Me Purano Ke Kshaishik Nihitarth Ek Samalochanatmak Adhyayn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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5. ... पौराणिक अन्तर्वस्तु का वर्तमान शिक्षा व्यवस्था मे प्रासंगिकता .व उपयोगिता की दृष्टि रो आलोचनार्मक मूल्यांकन करना । शोध परिकल्पना निःसन्देह किसी राष्ट्र की शिक्षा नीति व शिक्षा व्यवस्था अनेक कारकों से प्रभावित होती है। विगत व वर्तमान रागाजिक सांस्कृतिक तथा आर्थिक परिरिथत्तियां एवं रागरयाएं, दार्शनिक दृष्टिकोण व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय आवश्यकताएं व आकांक्षाएं एक सुस्पष्ट, . व्यावहारिक तथा प्रभावी शिक्षा व्यवस्था की निर्धारक तत्व होती हैं। वर्तमान का सही ढंग से अवबोध करने तथा वर्तमान की समस्याओं का निराकरण करने में अतीत की घटनाओं व उनकी परिणामों का वस्तुनिष्ठ ढंग से विश्लेषण अत्यधिक उपयोगी होता है। पुराणों की वर्ण्य सामग्री यथावत अपने समग्र रूप में वर्तमान भारतीय परिस्थितियों में सर्वसम्मति से . स्वीकार्य हो, यह मानना तो उचित न होगा, परन्तु निश्चय ही उसमें अनेक ऐसे तत्व होंगे . जो आधुनिक समय में भी पूर्णत: अपनी प्रासंगिकता व उपयोगिता रखते हों । आधुनिक समय में जबकि भौतिकतावादी दृष्टिकोण एवं आध्यात्मिकता में संतुलन स्थापित किया जाना अपरिहार्य प्रतीत होता है, इस स्थिति में पुराणों की विषय-वस्तु शिक्षा व्यवस्था के लिए लाभकारी मार्गदर्शक तत्व उपलब्ध करा सकती है। अत: प्रस्तुत शोध इस परिकल्पना पर आधारित है कि पुराणों की शिक्षाएं, शिक्षा दर्शन एवं वर्ण्य-विषय वर्तमान परिस्थितियों में व्यवहार्य तथा उपयोगी हैं । प्रयुक्त शब्दों का परिभाषीकरण पुराण- पुराण शब्द की व्युत्पत्ति पाणिनी यास्क तथा स्वयं पुराणों ने भी दी है। प् इसका अर्थ है- पुरातन, प्राचीन, पूर्वकाल में होने वाला। यास्क के निरुक्त के. अनुसार पुराण का अर्थ है- 'पुरा नवम्‌ भवति', अर्थात जो प्राचीन होकर भी नया होता है। वायु... पुराण के अनुसार इसकी सकी व्युत्पत्ति है- पुरा अनति', अर्थात प्राचीन काल में जो जीवित... ,




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