श्री धर्म कल्पद्रुम | Shri Dharma Kalpadruma

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Shri Dharma Kalpadruma by स्वामी दयानन्द -Swami Dayanand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राण झऔौर पीठतत्व । र्पू०्ट् 'दर्शनोमें स्थूलपदार्थको मैटर 1120167 ) श्रौर प्राणकों फोर्स '( प01०८ ) कह कर इसी प्रकारसे दोनोंके परस्परापेक्तित्व सस्वन्धको अनुमान किया है श्रौर इसी फोसँके झाविरभाव तिरोंभावके झजुसार स्थूलपदार्थगत श्राणविक शाक- पंण-विक्षणका तारतस्य निर्धारित किया है-। श्रीसगवान्‌ शंकराचार्यने भी बुदददारण्यकभाष्यमे इस विज्ञानको प्रतिपांदित करके कहा है।-- “काधघात्सके नामरूपे छारीरावस्थे क्रियात्मकस्तु प्राणस्तयोरुपछम्नक! ” कार्यात्सक जड़ पदार्थ नाम और रूपके द्वारा स्थूल शरीरको श्याश्रय करता है और करणात्मक सूदमप्राण उसका धारक है। अतः प्राच्य और प्रतीच्य दुर्शनों- के सम्मिलित सेताजुसार यह सिद्धान्त निर्सुग्र हुआ कि जड़ पदार्थ सूदमशक्ति- का ही घनीभावमात्र है और सूदम प्राणशक्ति इसी घनीभूत जेडपदार्थकों ्ाधार वनाकरं उसीके वीचमें प्रच्छुन्न रहकर समस्त जड़जगत्‌की परिचालना किया करती है । त्रिकालदर्शी सहर्पियोने झपनी योगशक्तिके द्वारा सूदमजगत्‌के घ्राण- मय, मनोसय, विज्ञानमय श्र शानन्द्सय कोषोौका जो विस्तृत स्वरूप चर्णन किया है उनमेंसे प्राणमय कोषका कुछ स्वरूप इस तरहसे पश्चिमी दार्शनिक परिडतगण श्रन्लुभव करनेमें समथे हुए हैं । झव परमात्माकी इच्छाशक्तिसे समध्रि श्र व्यष्रिगत चिश्वविधात्री प्राणशक्तिकी उत्पत्तिका विज्ञान प्रतिपादित किया जाता है । छान्दोग्यश्रुतिमें लिखा हे, यह विश्व संसार सड्डरपका ही परिणाम मात्र है। यथा ।-- “तानि है बेतानि सझूल्पैकाघनानि संक्रल्पात्मकानि # ५, सड्ल्पे प्रतिष्ठितानि समक्लूपतां यावाएइथिवी समकल्पेतां चायुय्याकाद्याय्य समकर्पतासापस्थ तेजय्य”' समस्त दृश्य जगत्‌ सडूल्प अर्थात्‌ परमात्माकी इच्छाशक्तिके हारा ही उत्पन्न होता है। युललोक, प्रथ्वीलोक, वायु, आकाश, झसि, जल श्रादि समस्त ही उनकी सडल्पमूलक इच्छाशक्तिके द्वारा प्रकट हुए हैं । 'सोइकामघत एकोउहं बहु स्थाम्‌” 'कामस्तद्य्रे समचचत' इत्यादि श्रुतिद्रौंके द्वारा भी दृश्य प्रपश्चका विस्तार परंमात्माकी इच्छा- शक्तिसे ही होता है, ऐसा सिद्ध होता है। महाप्रलयानन्तर सष्टिके घाकालमें पूर्वकल्पाजुसार इस प्रकारसे सुषकी सतः इच्छा उत्पन्न होनेखे ही प्राणशक्तिः




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