जैन शिलालेख संग्रह भाग - 4 | jain Shila Lekh Sangrah Bhag - 4
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
567
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना ट्द
कराया था । दूसरे लेख ( क्र० १३१ ) में सन् १०४५ में इस गणके कुछ
आचार्योका वर्णन हैं । इस समय चावुण्ड नामक अधिकारोने मुगुन्द ग्राममें
एक जिनालय बनवाया था । अन्य दो लेख ( क्र० ६११ तथा ६१२ )
अनिश्चित समयके निधिधि लेख हैं । इनमें पहला लेख इस गणके दान्त-
वोरदेवके समाधिमरणका स्मारक है ।
यापनीय संघका दूसरा गण पुन्नागवक्षमूल गण चार लेखोंसे ज्ञात
होता है ( क्र० १३०, २५९, १६८, ६०७ ) । पहले लेखमें सन् १०४४
मे इस गणके बालचन्द्र आचार्यकों पूलि नगरके नवनिर्मित जिनालयके लिए
कुछ दान दिये जानेका वर्णन है । इसी लेखके उत्तरार्धमें सन् ११४५ में
इस गणके रामचन्द्र आचार्यको कुछ दान दिये जानेका उल्लेख है । इस
गणका अगला उल्लेख ( क्र० २५९ ) सन् ११६५ का है। इसमें इस
गणकी गुरुपरम्परा इस प्रकार दी है - मुनिचन्द्र - विजयकीति - कुमार-
कीर्ति त्रेविद्य - विजयकीति ( द्वितीय ) । शिलाहार राजा विजयादित्यके
सेनापति कालणने एक्कसम्बुगे नगरमें एक जिनालय बनवाकर उसके
लिए विजयकीति ( द्वितीय ) को कुछ दान दिया था । एक लेखमें
( क्रर १६८ ) वृक्षमूलगणके मुनिच्द्ध त्रेविद्यके शिष्य चारुकीति पण्डित-
को कुछ दान दिये. जानेका वर्णन है - यह सन् १०९६ का लेख है । एक
अनिश्चित समयके लेख ( क्र० ६०७ ) में भी वृक्षमूलगणके एक मन्दिर
कुसुमजिनालयका उल्लेख है। हमारा अनुमान है कि इन दो लेखोंका
वृक्षमूलगण पुन्नागवक्षमूलगणसे भिन्न नही होगा।'
यापनीय संघके कण्डूर गणका उल्लेख तीन लेखोंमे है ( क्र० २०७,
३६८,३८६ ) इनमें पहला लेख १२वीं सदीके पूर्वांधका है तथा इसमें
१. पहले संग्रहमें पुन्नागइक्षमूलगणके दो उल्लेख सनू द१२ तथा
सन् ११०८ के हैं ( क्र० १२४, २५० )।
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