जाति भेद | Jati Bhed
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
138
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand) जातभद लक्षण 15३]
सन ययलवलटसनधथ
बाहझणो5स्यमुखमासीद् चाह राजन्यः छृतः
ऊरू तद्त्य यद्वश्बः पदम्या० शूद्रोअजायत ॥
घ्यग । १० । ९० | ९१
. हमारे पौराणिक भाई इसका झर्थ यह करते हैं ब्राह्मण
ब्रह्मा के खिर से, चत्रिय उसके वाइुओ ' से, वेश्य उसके जंघा से
आर शूद्र येरो से उत्पन्न हुए” |.
परन्तु यदद झाथे झशुद्ध है श्र मन्त्र का शब्दार्ध यद हैः--
'प्राह्मण उसका ( थर्थात् मट्लुष्य--समाज्र का ') सुख हे
त्त्रिय चोद बनाया गया है. । जो वैश्य, है चद्द उसका मध्य
भाग है, झौर शूद्र पाँच बनाया गया है”
मन्त्र की पूर्वापर संगति मिलाने से मालम होगा कि मस्त्र
का ठीक शर्थ यही है । इस सुक्त के नव मन्त्र में मठुष्य समाज
का चिराटे रुप से एक पुरुष के समान वर्णन किया गया है ।
१० च मन्त्र में यद प्रश्न किया गया दे
मुखं किम त्योसोत् किं बाहू किमूरूपादा उच्येते
अधात् “उसका मुख क्या है, बाह क्या हैं, मध्य भाग और
पांच कया कहे जाते हैं”
११ वां मन्त्र इसी प्रश्न का उत्त है श्रौर उसका सत्य थे
है जो ऊपर दमने दिया है # ।
# इस मन्त्र श्रौर उसके श्रय की पूरो व्याख्या “मनुष्य समाज”
. नाम के पुस्तक में की गई दे जो श्रावण पतिनिधि समा--यक्रप्रान्त से
मिलेगी ।
कक बना
User Reviews
No Reviews | Add Yours...