भारतीय अर्थ शास्त्र भाग 1 | Bhartiya Arth Shastra Bhag 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
256
श्रेणी :
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श्रीदुलारेलाल भार्गव - Shridularelal Bhargav
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(१४)
है। परंतु उसे घधिकतम उपयोगी बनाने के लिये देश की दशा
का झच्छा ज्ञान होना झनिवाये है, देश के श्राधिक तथा नेतिक
विपयों की विवेचना आवश्यक है । ये विपय क्िस्से-कहानियों या
उपन्यासों की तरह रोचक श्रथवा रण-भूमि के चृत्तांतों की तरह
उत्तेजक न होने पर भी धार्मिक अंथों की तरह कल्याणकारी हैं ।
इस समय देंगश के लिये राजनीतिक स्वाधीनता के साथ यदि
श्रार्थिक स्वावदावन अआवश्यक है, तो श्रथ-शाख्र के श्ध्ययन:
की ओर उपेक्षा का भाव रहना कदापि उचित न होगा । उसे सादर,
सहप अहण करना चाहिए ।
श्र्थ-शासा का श्ाघार वास्तविक परिस्थिति है । अतएव इस
विपय की रचना के लिये लेखक को झनेकों पस्तकों, रिपोर्टों ओर
पत्र-पत्रिकाओं की सहायता लेकर वदुत कुछ संकलन-काये करना
पढ़ता हैं । इस सामभ्री के श्रनुकूल रहकर ही वह श्रपनी विचार-
स्वतंत्रता प्रकट कर सकता है, उससे श्रथक् नहीं । इसलिये ऐसी
पुस्तकों में वैसी मोलिकता नहीं मिल सकती, जो उच्च कोटि के
कल्पनात्मक या झादर्शदादी सादित्य में होती है । भपनी परिस्थिति
के श्रनुसार मैंने इस पुस्तक को यथाशक्ति श्रत्युत्तम बनाने का
प्रयत्न किया है । इसमें कहाँ तक सफल हुआ हूँ, यह तो मर्मज्ञ
पाठक ही जानें; परंतु मुझे थ्ाशा दे, अपने ढंग की झर्थ-शास्त्र-
संबंधी यह पहली ही पुस्तक हैं । यह विचार करके सहदय पाठक
मेरी चुटियों को क्षमा करेंगे ।
इस पुस्तक के खंडों के संबंध में सुके दो बातें विशेष रूप से कहनी
४ । अथ-शास््र के पाठक जानत हक प्रायः उपभोग (005पाएए1[-
छिएए ) के संबंध में झंगरेज़ी पुस्तकों में बहुत कम विचार किया
जाता है । परंतु वह विपय दे बहुत उपयोगी । अतः मैंने उस पर
भी यधेष्टर प्रकाश डालने का .प्रयल किया है । फिर राजस्व के संबंध
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